
,,सीएमओ कार्यालय पर RTI कानून का पालन नहीं करने का समाजसेवी ने लगाया आरोप
राजस्थान के कानून के आधार पर केंद्र में लागू हुए सूचना के अधिकार अधिनियम में संशोधन को लेकर लेकर देश भर में चर्चा है। संसद में शुक्रवार को आरटीआई संशोधन विधेयक 2019 तो ध्वनिमत से पारित हो गया, लेकिन देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित विपक्ष ने संशोधन को पूर्णत: गलत ठहराया दिया। देश में 12 अक्टूबर 2005 को लागू इस अधिनियम को उस समय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आजाद भारत में सबसे कामयाब कानूनों में से एक माना था। अब वे ही संशोधन के विरोध में उतर आए है और इन संशोधनों का लगातार विरोध कर रहे है। वे केन्द्र सरकार पर भी दबाव बना रहें है कि ऐसे संशोधनों से आरटीआई का महत्व ही कम हो जाएगा। इसलिए इन्हें वापस लिया जाए
संशोधन पर एक नजर
- अब केंद्र सरकार तय करेगी सभी मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों और राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते, सेवा और अन्य।
अभी ऐसी है स्थिति
- वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन।
सामाजिक कार्यकर्ता की नजर में संशोधित अधिनियम
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे के अनुसार अभी तक सूचना आयुक्त का दर्जा निर्वाचन आयुक्तों जैसा था। इसमें उन्हें सरकारी महकमे से सूचना निकालनी होती थी तो दर्जा सक्षम बनाता था। अब केंद्र ने कानून को कमजोर कर दिया है। अब जब केंद्र ही सब तय करेगी तो सूचना आयोगों की स्वायत्तता कहां बचेगी।
सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय ने कहा कि आरटीआई कानून बड़े प्रयास, लंबी बहस के बाद लागू हुआ था। वर्तमान में इसको कमजोर कर दिया है। इस बदलाव में सरकार की नीयत ठीक नहीं लगती। पारदर्शिता का दावा करने वाले सरकार अब कैसे कानून में बदलाव कर सकती है। सरकार सूचना आयोग को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है। आरटीआई कानून को यूपीए सरकार ने लागू किया था। बीच बीच में इसके संशोधन की बात आती थी तो कई विरोध के चलते इन्हें मंजूरी नहीं दी गई लेकिन इस बार मोदी सरकार ने इसे लागू कर दिया।
Published on:
26 Jul 2019 07:07 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
