भिक्षावृत्ति चुनाव नहीं मजबूरी है, यह राज्य और समाज की नाकामी: हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: भिक्षा मांगने को अपराध बनाने वाले कानून रद्द
भिक्षावृत्ति चुनाव नहीं मजबूरी है, यह राज्य और समाज की नाकामी: हाईकोर्ट
श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने राज्य में भिक्षावृत्ति को अपराध बनाने वाले कानून और नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस राजेश बिंदल जम्मू-कश्मीर भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम, 1960 और जम्मू-कश्मीर भिक्षावृत्ति निषेध नियम, 1964 को रद्द करते हुए सख्त टिप्पणी की।
हाईकोर्ट ने भिक्षावृत्ति को राज्य की नाकामी करार दिया। पीठ ने कहा, ‘गरीबी का अपराधीकरण ज्यादा वंचित बनाने व सामाजिक बहिष्कार को बढ़ाता है। गरीबी व इसके परिणाम स्वरूप भिक्षा मांगना चुनाव नहीं बल्कि परिस्थितियों की मजबूरी है। यह कानून भिक्षुओं को उनके जीवन और आचरण के संबंध में कोई व्यक्तिगत स्वायत्ता का अधिकार नहीं देते। हाईकोर्ट ने यह आदेश अधिवक्ता सुहेल राशिद भट्ट की जनहित याचिका पर सुनाया। 2017 के विधि स्नातक राशिद ने 2016 में मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती दी जिसके तहत श्रीनगर में भिक्षावृत्ति को रोक लगाई गई थी।
कानून बनाने व लागू करने वाले पूर्वाग्रह में
पीठ ने कहा कि भिक्षावृत्ति अपने नागरिकों को अत्याधिक गरीबी, भोजन, वस्त्र, आश्रय, स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवन की अन्य बुनियादी सहूलियतों को उपलब्ध कराने में राज्य और व्यापक रूप में समाज की नाकामी का प्रमाण है। अनु. 21 जीवन का अधिकार सुनिश्चित करता है। भिक्षावृत्ति को अपराध बनाने वाला कानून पूर्वाग्रह के चलते उन लोगों के अधिकारों पर विचार नहीं करता जो वंचित हैं। यह कानून और उसे लागू किया जाना बेहद गरीब और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के बीच समाप्त न होने वाले अंतर को दर्शाता है।
अभाव दूर करना संवैधानिक गारंटी
ऐसे व्यक्ति को जेल में डालना न्यायोचित नहीं जो जीवन निर्वाह के साधन के रूप में भिक्षावृत्ति का सहारा लेने को मजबूर है, वह भी तब जब हर प्रकार अभाव से मुक्त समाज बनाने की संवैधानिक गारंटी को लागू करने के लिए राज्य जिम्मेदार है।
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