लक्ष्मी पूजन प्रदोषयुक्त अमावस्या को स्थिर लग्न व स्थिर नवांश में किया जाना सर्वश्रेष्ठ होता है। इस दिन अमावस्या दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर आएगी। ज्योतिषाचार्य चन्द्रशेखर शर्मा ने बताया कि लक्ष्मी पूजन का श्रेष्ठ समय प्रदोषकाल में शाम 5 बजकर 45 मिनट से रात 8 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। शाम 6 बजकर 53 मिनट से रात 8 बजकर 50 मिनट तक वृष लग्न, रात 7 बजकर 05 मिनट से 7 बजकर 18 मिनट तक प्रदोषकाल, स्थिर वृष लग्न व स्थिर कुंभ का नवांश रहेगा।
दिवाली पूजन का समय ( Diwali 2019 Puja muhurat )
दिवाली पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय— शाम 7.05 से 7.18 बजे तक
प्रदोष काल- शाम 5.45 से रात 8.19 बजे तक
वृष लग्न- शाम 6.53 से रात 8.50 बजे तक
सिंह लग्न – मध्यरात्रि बाद रात 1.23 बजे से 3.39 बजे तक
शाम और रात के श्रेष्ठ चौघड़िए
शुभ, अमृत व चर का चौघड़िया – शाम 5.44 बजे से रात 10.34 बजे तक
लाभ का चौघड़िया – मध्यरात्रि 1.47 बजे से 3.24 बजे तक
दिवाकाल के श्रेष्ठ समय
चर-लाभ व अमृत का चौघड़िया – सुबह 8 बजे से दोपहर 12.11 बजे तक
शुभ का चौघड़िया – दोपहर 1.34 बजे से 2.58 बजे तक
अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.47 से दोपहर 12.35 बजे तक
दिवाली पूजन सामग्री
लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, कमल और गुलाब के फूल, पान का पत्ता, रोली, मौली, केसर, चावल, सुपारी, लौंग, फल, फूल, दूध, इत्र, खील, बताशे, शहद, मिठाई, दही, गंगाजल, दीपक, रुई , कलावा, धूप बत्ती, कपूर, इलायची, नारियल, कलश, साबुत धनिया, चांदी का सिक्का, आटा, तेल, लौंग, लाल कपड़ा, हल्दी की गांठ, कमलगट्टे, पंचमेवा, देसी घी, चांदी का सिक्का, गन्ना, चौकी और एक थाली।
पूजा विधि
-चौकी को साफ करने के बाद आटे की मदद से चौकी पर नवग्रह यंत्र बनाएं। कलश में दूध, दही, शहद, गंगाजल, लौंग इत्यादि भरकर उस पर लाल कपड़ा बांध दें और उसके ऊपर नारियल विराजित कर दें। नवग्रह यंत्र पर चांदी का सिक्का रखें और लक्ष्मी-गणपति की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर गंगाजल से स्नान कराएं। रोली और अक्षत से टीका करें। दीपक जलाएं।
-भगवान के विग्रह के बाईं तरफ (यानी आपके दाहिनी तरफ) देसी घी का दीपक जलाएं। दाहिने हाथ से भगवान को इत्र, अक्षत, पुष्प, मिठाई, फूल और जल अर्पित करें।
-इसके बाद अपने दाहिने हाथ यानी सीधे हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर लक्ष्मी, गणेश सहित सभी देवों का ध्यान करते हुए पूजा का संकल्प करें। इसके बाद सबसे पहले गणपति और लक्ष्मीजी का पूजन करें। फिर दीपक पर रोली और अक्षत से टीका करें और जीवन को प्रकाशित करने के लिए दीपक और अग्निदेव को धन्यवाद करें।