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जयपुर

स्कूल में न शिक्षक-बच्चे, न किताबें, विभाग पूछ रहा 15 दिन में कितना पढ़ाया

विभाग ने स्कूलों के संस्था प्रधानों से जानकारी मांगी है कि 15 दिन में कितना कोर्स हुआ

जयपुरApr 29, 2019 / 06:52 pm

Deepshikha Vashista

Jaipur

स्कूल में न शिक्षक-बच्चे, न किताबें, विभाग पूछ रहा 15 दिन में कितना पढ़ाया

जया गुप्ता / जयपुर. प्रदेश में निजी स्कूलों लगातार फीस बढ़ाकर मालामाल हो रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों की हालत सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है। शिक्षा विभाग लगातार आदेश पर आदेश दे रहा है। मगर वे लागू किस प्रकार होंगे व स्कूलों में लागू किए जा रहे हैं या नहीं, यह भी कोई देखने वाला नहीं है।

विभाग का कहना

दरअसल, विभाग ने महीने भर पहले स्कूलों को निर्देश दिए थे कि बोर्ड परीक्षा के अगले दिन से ही नया सत्र शुरू किया जाएं। छठीं, नौवीं व ग्यारहवीं कक्षा बोर्ड परीक्षा के अगले दिन से ही शुरू की जानी थी। ताकि नामांकन कम न हो। इतना ही नहीं विभाग ने स्कूलों के संस्था प्रधानों से यह जानकारी भी मांगी है कि तीनों कक्षाओं में 15 दिन में कितना कोर्स हुआ है। यह जानकारी ऑनलाइन फीड करें।
स्कूलों की स्थिति

विभाग ने अपनी ओर से आदेश-निर्देश जारी कर जिम्मेदारी पूरी कर दी। लेकिन, स्कूलों में वास्तविक हालत क्या हैं। इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। स्कूलों की वास्तविक हालत यह है कि राजधानी के पॉश इलाकों में चलने वाले सीनियर सैकण्डरी स्कूलों मेें एक भी कक्षा नहीं लग रही। स्कूलों में बच्चे भी नहीं मिले और न हीं किताबें अभी तक स्कूलों में पहुंची हैं। शिक्षक भी चुनाव ड्यूटी में लगे हुए हैं। बीस-तीस फीसदी शिक्षक ही स्कूलों में मौजूद हैं।

शिक्षकों की पीड़ा

उधर, स्कूली शिक्षकों की पीड़ा है कि विभाग ने एक ही समय पर पांच अलग-अलग निर्देश दे रखे हैं। शिक्षक कौनसा काम करें और कौनसा नहीं। निर्वाचन आयोग ने चुनाव में शिक्षकों की ड्यूटी लगा रखी है। वहीं, स्कूलों में परीक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाएं जांच कर परिणाम बनाया जा रहा है, जो कि 8 मई को घोषित करना है। 1 मई से नया सत्र शुरू होना है, प्रवेशोत्सव के लिए घर-घर जाकर सर्वे व बच्चों को स्कूलों से जोडऩे का काम किया जा रहा है। स्कूलों में छठीं, नौवीं व ग्यारहवीं की कक्षा लगाने के निर्देश भी हैं। कुछ शिक्षकों का कहना है कि परिजन बोर्ड परीक्षा के परिणाम के अनुसार ही 11वीं में बच्चों को विषय दिलवाते हैं। उससे पहले उन्हें स्कूल ही नहीं भेजते।

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