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जयपुर

जयपुर में आकर फंसे विदेशी परिंदे, एक तरफ जहरीला पानी, दूसरी तरफ टोपीदार बंदूक

जलाशयों में पक्षियों पर बारूदी पटाखों का कहर, पक्षियों के दुश्मन बने जलाशयों के मछली ठेकेदार

जयपुरNov 21, 2019 / 09:22 pm

Abrar Ahmad

जयपुर में आकर फंसे विदेशी परिंदे, एक तरफ जहरीला पानी, दूसरी तरफ टोपीदार बंदूक

जयपुर में आकर फंसे विदेशी परिंदे, एक तरफ जहरीला पानी, दूसरी तरफ टोपीदार बंदूक

जितेन्द्र सिंह शेखावत/ जयपुर. आदिकाल से सात समंदर पार कर राजस्थान के जलाशयों में पेट भरने और प्रजनन के लिए आने वाले पक्षियों के लिए अब कलयुग का सा कहर बरपने लगा है। वे किसी जलाशय में जाते हैं तो वहां मछली ठेकेदार के कारिंदे अपनी मछलियों को बचाने के लिहाज से पक्षियों को जलाशय में बैठने ही नहीं देते। ऐसे में अपनी भूख-प्यास मिटाने के लिए पक्षियों को सबसे बड़ी सांभर झील में पड़ाव डालने को मजबूर होना पड़ रहा हैं।
मत्स्य पालन विभाग के ठेकादारों के कर्मचारी पक्षियों को भगाने के लिए मोटर बोट और नावों पर गश्त करते हैं। टोपीदार बंदूकों, पटाखों को छोड़कर पक्षियों को भगा देते हैं। आठ हजार किलोमीटर दूर तक से आने वाले करीब पचास-साठ प्रजाति के मेहमान विदेशी पक्षी इनके बारूदी धमाकों से डर कर पानी में बैठने की हिम्मत नहीं करते। सांभर झील के चारों तरफ करीब डेढ़ सौ किलोमीटर के दायरे में बने छोटे-बड़े बांधों और तालाबों में मतस्य विभाग और पंचायत समिति स्तर पर मछली पालक व्यापारियों को ठेके दे रखे हैं।

– मत्स्य विभाग के ठेकेदारों का कहना है कि एक पक्षी पूरे दिन में करीब ढाई से तीन किलो मछली को खाता है। इनमें जल कागली नामक पक्षी तो मछली पालन व्यवसाय का सबसे बड़ा दुश्मन है। वे सैकड़ों के समूह में एक साथ तालाब में उतर कर तालाब में पल रही हजारों मछलियों को चट कर जाते हैं। देशी या विदेशी पक्षी अपने पूरे कुनबे और समूह के साथ तालाब की मछलियों को घेर कर धावा बोलते हैं। पक्षियों से तालाब की मछलियों को बचाना बहुत मुश्किल हो जाता हैं।
-पेलिकंस की बड़ी चौंच होती है। यह बड़े समूह में आती है। एक बार में तीन-चार किलो मछलियां गटक जाती है। मछली पालक टोपीदार बंदूकों से इनको उड़ा देते हैं और बैठने भी नहीं देते। अनुबंध में पक्षियों को नहीं उड़ाने की शर्त पर ठेका दिया जाता है जिसका पालन नहीं होता।

-मतस्य विभाग और ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र के सैकड़ों छोटे-बड़े जलाशयों में मछली पालन के ठेके दे रखे है। इनमें चंदलाई, टोरड़ी सागर, छापरवाड़ा, चांदसेन, सैंथल सागर, मोरेन सागर, निवाई के पास में मासी डैम, टोंक में गीलवा, बरखेड़ा, बीसलपुर, मोरेन सागर, बंध बुचारा, मौजमाबाद के पास नया सागर आदि बड़े जलाशय हैं।
-अमूमन सभी जलाशयों के मछली पालक ठेकेदार अपनी मछलियों को पक्षियों से बचाने के लिए नावों में गश्त कर टोपीदार बंदूक ,पटाखे और कनस्तर बजाकर पक्षियों को बैठने नहीं देते हैं।
हर्षवर्धन -पक्षी विशेषज्ञ

-पक्षी को तालाबों में मछली खाने नहीं देते ऐसे में हजारों परिंदे सांभर जाते हैं और वहां पर उनको मौत मिलती है।
-राज चौहान, सचिव, नेशनल नेचर सोसायटी
पक्षियों को बचाने के लिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस बारे में अफसरों से पूरी रिपोर्ट तलब की है।
लालचंद कटारिया, कृषि एंव पशुपालन मंत्री

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