लॉकडाउन में भूखे मजदूर—दूसरे राज्यों के मजदूरों को ‘बाहरी’ बता नहीं दिया जा रहा खाना
अभी कोरोना महामारी को लेकर हर कोई डरा है। लेकिन कुछ लोग हैं जो महामारी से नहीं भूख से डरे हुए हैं। बाहरी राज्यों से जयपुर में दिहाड़ी करने आए लोगों को समय पर सरकारी सहायता यानी खाना नहीं मिल रहा।
दूसरे राज्यों के मजदूरों को ‘बाहरी’ बता नहीं दिया जा रहा खाना
JAIPUR अभी कोरोना महामारी को लेकर हर कोई डरा है। लेकिन कुछ लोग हैं जो महामारी से नहीं भूख से डरे हुए हैं। बाहरी राज्यों से जयपुर में दिहाड़ी करने आए लोगों को समय पर सरकारी सहायता यानी खाना नहीं मिल रहा। देश में दिहाड़ी मजदूर कोरोना की महामारी से मरे न मरे, भूख से जरूर मर जाएंगे। देश में इस तबके के रहने—खाने की बिना कोई रणनीति बनाए लॉकडाउन लगा दिया गया। बेघर, भूखे मजदूरों का रैला देशभर ने देखा, हर नेशनल हाइवे पर। शहरों में पेट भरने का साधन नहीं दिखा तो यह लोग अपने घर पैदल ही चल दिए। और इस तरह 25 मजदूरों ने रास्ते में दम तोड़ा। जो लोग अपने घरों को नहीं लौटे हैं, उनके लिए भी भूख भयावह बीमारी है।
हम बात कर रहे हैं जयपुर के टोंक रोड स्थित इंडिया गेट पर महावीर कॉलोनी की जहां हजारों की संख्या में यह दिहाड़ी मजदूर किराए के घरों या सड़कों पर डेरा डाले हैं। मीलों में काम बंद हो गया है और इन्हें पगार मिलना भी। मकान मालिक निकाल रहे हैं, यह अपने गांव नहीं जा पाए तो यहां की राज्य सरकार से खाना मिलने की आस लगाए बैठे हैं। सरकारी इंतजाम यह हैं कि यहां एक टाइम खाना आता है और हजारों लोगों के लिए कोई 50 पैकेट खाना भी नहीं आता। इस पर खाना लाने वाले पुलिस कर्मचारी कुछ लोगों में खाना बांट निकल जाते हैं। बाकी मजदूरों के लिए खाना मांगा गया तो कहा गया कि ये ‘बाहरी’ लोग हैं। इसीलिए अपने परिवार का इंतजाम खुद करें या अपनी कम्पनी मालिक से मांगे। वहीं सांगानेर तहसील और थाने के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने भी यही कहा कि इतने लोगों को खाना नहीं खिला सकते।
हम यहां फूड पैकेट की गाड़ी का इंतजार करते हैं। कभी एक समय का भोजन मिल जाता तो कभी वो भी नहीं। पास पैसा नहीं है और न ही राशन। पूरा परिवार भूखे रहकर दिन काट रहा है।
रफीक, दिहाड़ी मजदूर
हमने इन मजदूरों को खाना देने के लिए गाड़ी लेकर आ रहे पुलिस कर्मचारियों से कहा। वे कहते हैं कि ये बाहरी है। इतने लोगों का खाना हमारे पास नहीं हैं। यहां हजारों मजदूर सड़कों पर हैं, पर फूड पैकेट पचास भी नहीं आते। हमने सांगानेर एसडीएम और तहसील कार्यालयों में बात की, वहां से भी यही जवाब मिला कि इतने लोगों के खाने का इंतजाम नहीं किया जा सकता।
शीला तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता
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