गौरतलब है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रदेशभर में पेयजल गुणवत्ता जांच के लिए उपभोक्ता के घर तक पानी गुणवत्ता जांच के लिए मोबाइल वाटर टेस्टिंग लेबारेट्री वैन भेजने का निर्णय लिया गया। पहले चरण में प्रदेश के बीस जिलों को मोबाइल वाटर टेस्टिंग लेबोरेट्री वैन मिल भी गई। तो दूसरे चरण में प्रदेश के शेष 13 जिलों में मोबाइल वाटर टेस्टिंग लेबोरेट्री वैन तैनात करने का मामला विवादों में अटक गया है। हालांकि बीस जिलों में भेजी गई वाटर टेस्टिंग लेबोरेट्री वैन भी ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकी है। वर्तमान में बीस में से करीब आधी से ज्यादा वैन तो आॅफ रोड हैं ऐसे में पेयजल गुणवत्ता जांच की सरकार की योजना पर खुद जलदाय अफसरों की उदासीनता ही पानी फेर रही है।
मोबाइल वाटर टेस्टिंग लेबोरेट्री वैन के कार्य कलापों की जब जयपुर स्थित स्टेट रेफरल सेंटर लेबोरेट्री चीफ केमिस्ट राकेश माथुर से जानकारी मांगी तो उन्होने मौखिक तौर पर तो सबकुछ ठीक होने का दावा किया। लेकिन जब रिपोर्ट दिखाने के सवाल को चीफ केमिस्ट सब कुछ ठीक होने का हवाला देकर टालमटोल कर गए।
जानकारी के अनुसार एक मोबाइल वाटर टेस्टिंग लैब वैन को सालभर में तीन हजार वाटर सैंपल टेस्ट करना अनिवार्य है। मोबाइल लैब के कार्यों की संबंधित क्षेत्र के जलदाय अधिशाषी अभियंता द्वारा सत्यापित किया जाता है जिसके बाद ही वैन संचालन कर रही फर्म को जांचे गए सैंपलों का भुगतान विभाग को करना है। लेकिन लैब के कार्यों में पारदर्शिता नहीं होने पर विभाग के अफसरों की कार्यशैली भी कठघरे में आ गई है।