बेस कैंप में दिखने लगी हैं दरारें
नेपाल सरकार (Nepali government) द्वारा गठित समिति की ओर से नए बेस कैंप की सिफारिश की गई है। स्थानीय समुदायों के साथ उनकी संस्कृति जैसे अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद यह स्थानांतरण वर्ष 2024 तक हो सकता है। पर्वतारोहियों को यहां सोते समय खतरनाक दरारें दिखाई दे रही हैं।
नेपाल सरकार (Nepali government) द्वारा गठित समिति की ओर से नए बेस कैंप की सिफारिश की गई है। स्थानीय समुदायों के साथ उनकी संस्कृति जैसे अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद यह स्थानांतरण वर्ष 2024 तक हो सकता है। पर्वतारोहियों को यहां सोते समय खतरनाक दरारें दिखाई दे रही हैं।
जलधारा का हो रहा विस्तार
अधिकांश ग्लेशियर चट्टानी मलबे से ढके हुए हैं, लेकिन बर्फीले क्षेत्र भी हैं, जिन्हें बर्फ की चट्टानें कहा जाता है। बर्फ की इन चट्टानों का पिघलना ही ग्लेशियर को सबसे ज्यादा अस्थिर बनाता है। जब बर्फ की चट्टानें पिघलती हैं तो इनके ऊपर का मलबा भी गिरता है और जल निकाय बन जाते हैं। बेस कैंप के ठीक बीच में एक धारा का लगातार विस्तार हो रहा है।
अधिकांश ग्लेशियर चट्टानी मलबे से ढके हुए हैं, लेकिन बर्फीले क्षेत्र भी हैं, जिन्हें बर्फ की चट्टानें कहा जाता है। बर्फ की इन चट्टानों का पिघलना ही ग्लेशियर को सबसे ज्यादा अस्थिर बनाता है। जब बर्फ की चट्टानें पिघलती हैं तो इनके ऊपर का मलबा भी गिरता है और जल निकाय बन जाते हैं। बेस कैंप के ठीक बीच में एक धारा का लगातार विस्तार हो रहा है।
'खुंबू ग्लेशियर' बेस कैंप
- वर्ष 1950 में स्थापित किया गया यह कैंप
- 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है कैंप
- 02 माह तक पर्वतारोही यहां रुकने के बाद करते हैं एवरेस्ट की चढ़ाई
- वर्ष 2018 में हुए शोध के अनुसार कैंप के पास का खंड प्रतिवर्ष एक मीटर की दर से पतला हो रहा है