सरकार कर्ज लेकर योजनाओं का आकार बढ़ाने का दंभ भर रही है और बजट घोषणाएं कई बार तो जुमलों जैसी नजर आती हैं। पिछली सरकार ने मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना की घोषणा की और अब भामाशाह योजना लॉन्च हो चुकी है, पर अस्पतालों में चिकित्सकों और सुपर स्पेशियलिटी की कमी है। शिक्षा की बात करें तो एम्स , आईआईएम और आईआईटी जैसे संस्थान आ गए, लेकिन राज्य ने इनके मुकाबले का कोई उच्च शिक्षण संस्थान खड़ा नहीं किया।
नौ साल में ब्याज भुगतान हुआ 5 गुणा: 1990 में जब शासन छोड़ा उस समय राज्य पर 6127 करोड़ रुपए कर्ज था, जो 31 मार्च 1999 को बढक़र 23 हजार 532 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
वर्ष 1999-2000 से वर्ष 2003-04 तक राज्य ने 29191 करोड़ कर्जा लिया, जबकि 2004-05 से 2008-09 तक संसाधनों की समुचित उपलब्धता के बावजूद 30943 करोड़ के ऋण का बोझ बढ़ाया गया।
5 साल में कुप्रबंधन ने वित्तीय स्थिति खस्ता हाल कर दी। मार्च 2008 के अंत में कर्ज का भार 77 हजार 138 करोड़ था, जो मार्च 2014 में 53 हजार 502 करोड़ से 1 लाख 30 हजार 640 करोड़ संभावित है। अफसोस है इतना कर्ज लेकर भी उत्पादक खर्चों में नहीं लगाया।
चार साल पहले बजट के समय राज्य सरकार ने बढ़ते कर्ज पर चिंता जताई। उस समय सरकार ने 1 लाख 30 हजार 640 करोड़ रुपए कर्ज होने का अनुमान बताया था और अब इसके 3 लाख 8 हजार करोड़ रुपए से अधिक होने का अनुमान है। सरकार की मानें तो राज्य को 1989-90 में 437 करोड़ रुपए ब्याज देना पड़ रहा था और 2018-19 में 21 हजार 412 करोड़ रुपए ब्याज चुकाना पडेगा। ब्याज की यह राशि बिजली जैसे विकास कार्यों के लिए रखे गए बजट के समान है। सरकार ने जो हालात सामने आए हैं, उससे अर्थशास्त्री चिंतित हैं।