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जयपुर

आखिरी क्यों होते हैं लोग खब्बू….पता चल गया वैज्ञानिकों को

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने खोज निकाले वो जीन, जिनकी वजह से लोग करते हैं उल्टे हाथ से काम, दुनिया में सिर्फ 12 फीसदी लोग होते हैं खब्बू

जयपुरSep 09, 2019 / 09:59 am

Shalini Agarwal

हमारे यहां उल्टे हाथ से काम करने को अच्छा नहीं माना जाता। पता नहीं कहां से उल्टा पैदा हो गया, सारे काम उल्टे होते हैं इसके…जैसी बातें उल्टे हाथ से काम करने वालों को सुनने को मिल ही जाती हैं लेकिन अगर आप भी उल्टे हाथ से काम करते हैं, तो अपने आपको दुनिया के एक्सक्लुसिव क्लब का हिस्सा मानें क्योंकि दुनिया में केवल 10 फीसदी लोग ही खब्बू यानी कि उल्टे हाथ से काम करने वाले होते हैं। ऐसे बात नहीं है कि केवल आज ही उल्टे हाथ से काम करने को बुरा माना जाता हो। मध्यकाल में उल्टे हाथ से काम करने वालों को जादू-टोना करने वाला माना जाता था। यह भी माना जाता था कि शैतान खुद खब्बू था और वह और दूसरी बुरी आत्माएं उल्टे हाथ का इस्तेमाल करती थीं। उल्टे हाथ से काम करने वाले को कैंची पकडऩे, कॉपी पर लिखने और कई कामों में असुविधा का सामना करना पड़ता लेकिन इतिहास में हमेशा से ही उनके साथ भेदभाव होता रहा है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है, जो लोगों के खब्बू होने के बारे में उत्तरदायी है। वैज्ञानिकों ने यूनाइटेड किंगडम के एक बायोबैंक का सहारा लेकर पांच लाख लोगों की जैनेटिक जानकारी प्राप्त की। जीनोम्स का अध्ययन करके ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम मानवीय जीनोम के चार विशेष ठिकानों का पता लगाने में सफल रही, जो कि यह तय करते हैं कि व्यक्ति सीधे हाथ से काम करेगा या फिर उल्टे हाथ से। टीम ने पांच लाख लोगों के जीनोम का अध्ययन किया, जिसमें से 40 हजार लोग लेफ्टी थे। वैज्ञानिक यह भी पता लगाने में कामयाब रहे कि इन्हीं जगहों की वजह से खब्बुओं में कुछ विशेष गुण भी आ जाते हैं, जैसे वे दुनिया भर में 90 फीसदी आबादी की तुलना में अधिक वाचाल होते हैं। शोधकर्ता डॉ. अकिरा विबर्ग के मुताबिक, इस शोध का फायदा उन कामों के लिए हो सकता है, जहां बोलने की जरूरत अधिक होती है, ऐसे कामों में खब्बुओं को प्राथमिकता दी जाती सकती है। हालांकि ऐसा औसतन होता है, जरूरी नहीं कि सभी लेफ्टी बोलने में अच्छे हों। शोधकर्ताओं ने इसके साथ ही शिजोफ्रेनिया और खब्बुपन के बीच भी संबंध खोज निकाला है। यह शोध जरनल ब्रेन में प्रकाशित हुआ है।

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