रंगों की फिलॉसफी और भाषा को समझा
‘फिलॉसफी ऑफ कलर्स’ सेशन का समापन आज
रंगों की फिलॉसफी और भाषा को समझा
जयपुर, २५ जून
जवाहर कला केंद्र की ओर से शुक्रवार को ‘फिलॉसफी ऑफ कलर्स’ ऑनलाइन सेशन में प्रतिभागियों ने रंगों की सराहना करना और रंगों की भाषा को गहराई से समझा। सेशन का संचालन कलाकार अमित कल्ला ने किया। सेशन में करीब 70 लोगों ने हिस्सा लिया। कल्ला ने कहा कि रंग देखने का अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। किसी रंग की विशेषता और शक्ति को समझने के लिए एक व्यक्ति की आत्मा और तत्व महत्वपूर्व भूमिका निभाते हैं। रंग के मूल्य को अंतज्र्ञान से ही अनुभव किया जा सकता है। रंग एक अनुभूति है जो किसी की कल्पना को बदल सकती है। रंगों की आंतरिक भावना का अनुभव करने और इसकी भाषा को समझने के लिए रंगों के साथ संबंध विकसित करने की आवश्यकता है। मानव मस्तिष्क 10 लाख तक रंगों को पहचान सकता है और कुछ महिलाएं तो एक करोड़ रंगों को भी पहचान सकती हैं।
उनका कहना था कि प्राकृतिक रंग बनाने के लिए हरसिंगार के फूल, नारियल का भूसा, चाय, हल्दी की जड़, कटहल, अनार का छिलका, इंडिगो और अन्य सब्जियां, हब्र्स और फूलों का उपयोग विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक रंगों को बनाने के लिए किया जा सकता है। ये रंग पीसकर या उबालकर बनाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कलाकारों को अपने व्यक्तित्व को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। वास्तविकता में कला संकल्प है और समानांतर है, जो किसी के व्यक्तित्व को जीवित रखती है। शनिवार को कलाकार अमित कल्ला के इस सेशन का समापन होगा। सेशन में प्राकृतिक रंग बनाने के लिए पीसने और उबालने की प्रक्रिया, रंगों की शक्ति को समझना और रंगों के साथ एक्सपेरिमेंट करना सिखाया जाएगा।
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