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जयपुर

राजस्थान में मतदान घटने से भाजपा-कांग्रेस किसका फायदा… कांग्रेस खेमे में खुशी का माहौल क्यों?

राजस्थान में इस बार 2019 के मुकाबले करीब 6 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। दोनों ही पार्टियां कम मतदान को अपने पक्ष में बता रही हैं। जानें कम मतदान होने से किस राजनीतिक पार्टी का फायदा और नुकसान होने वाला है?

जयपुरApr 20, 2024 / 02:58 pm

Lokendra Sainger

राजस्थान में लोकसभा चुनाव को लेकर 12 सीटों पर पहले चरण का मतदान शुक्रवार को सम्पन्न हो गया। इस बार के मतदान प्रतिशत को देखकर राजनीतिक दलों की नींद उड़ गई है। दोनों ही पार्टियां कम मतदान को अपने पक्ष में बता रही हैं। इस बार 2019 के मुकाबले करीब 6 प्रतिशत कम मतदान हुआ है।

मतदान घटने से कांग्रेस को फायदा

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मायने यह नहीं रखता कि कुल मतदान प्रतिशत में अंतर आया है। बल्कि फर्क उससे पड़ता कि किस पार्टी का वोट प्रतिशत घटा है। यदि भाजपा का वोटिंग प्रतिशत घटता है तो प्रदेश की तीन से चार सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी सीधी टक्कर में होंगे। हालांकि, अभी से इसे तय नहीं माना जा सकता।
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एकदम परिणाम उलट की संभावना कम

बता दें कि 2009 में 2004 के मुकाबले एक फीसदी वोट घटा था। जिससे यूपीए-2 सरकार को फायदा हुआ था। 2004 में भाजपा को 21 और कांग्रेस को 4 सीटें मिलीं थीं, जो 2009 में बदलकर कांग्रेस को 20 और भाजपा की 4 हो गईं थी। एक सीट पर निर्दलीय की जीत हुई थी। दरअसल, 2004 में कई सीटों पर जीत का मार्जिन कम था, इसलिए एक फीसदी मतदान कम होने से ही परिणाम पलट गया।
वहीं 2014 चुनाव में वोटिंग 14% बढ़ा तो भाजपा ने सभी सीटें जीत ली थीं। 2019 में भी ऐसा ही दिखा था और जीत का मार्जिन और बढ़ गया। ऐसे में 2024 में 2019 की तुलना में करीब 6 प्रतिशत मतदान की कमी आने से परिणाम एकदम उलट होने जैसी संभावना कम दिखती है।
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बडी मार्जिन वाली सीटों पर नुकसान

मतदान प्रतिशत में कमी से भाजपा को इतने ही वोटों का नुकसान होता है या कांग्रेस को इतने ही वोटों का फायदा होता है तो बड़े मार्जिन वाली सीटों पर मार्जिन घटेगा। जिससे एक लाख से कम मार्जिन वाली भाजपा की जीती दौसा व करौली- धौलपुर सीट में कांग्रेस मुकाबले में आ सकती है।

मतदान कम होने की ये रही वजह

माना जा रहा है कि प्रदेश में मतदान प्रतिशत इसलिए गिरा क्योंकि चुनाव भले ही राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया हो, लेकिन चुनाव पूरी तरह जातियों के ध्रुवीकरण पर आधारित रहा। छत्तीस कौम के वोटों के उत्साह की जगह हर सीट पर प्रत्याशी नेता की जाति के वोटों का उत्साह ज्यादा दिखा। बड़ी संख्या में नेताओं के पलायन से भी मतदाता असमंजन की स्थिति में रहा।

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