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जांजगीर चंपा

प्रसव पीड़ा है तो मत आइए जिला अस्पताल, क्योंकि यहां इलाज नहीं मिलेगा केवल दर्द

डॉक्टर विहीन होने से स्थिति ऐसी हो चुकी है कि प्रसव के लिए आने वाले मरीजों को भर्ती से पहले ही स्टाफ नर्सों द्वारा बताया जा रहा है कि वर्तमान में यहां गायनिक नहीं है।

जांजगीर चंपाOct 13, 2019 / 06:04 pm

Vasudev Yadav

प्रसव पीड़ा है तो मत आइए जिला अस्पताल, क्योंकि यहां इलाज नहीं मिलेगा केवल दर्द

प्रसव पीड़ा है तो मत आइए जिला अस्पताल, क्योंकि यहां इलाज नहीं मिलेगा केवल दर्द

जांजगीर-चांपा. एक ओर संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने ठिठोरा पीटा जा रहा है तो दूसरी ओर जिले के सबसे बड़े अस्पताल में बीते 15 दिनों से सिजेरियन प्रसव ही होना बंद है, क्योंकि यहां पदस्थ इकलौते रहे गायनिक डॉ. सप्तर्शी चक्रवर्ती ने नौकरी छोड़ दी है और इसके बाद से जिला अस्पताल गायनिक विहीन हो गया है। केवल नार्मल जचकी ही यहां हो पा रहे हैं।
आगे भी जब तक कोई गायनिक नहीं आ जाते, तब तक सिजेरियन प्रसव वाले मरीजों को रेफर करने का सिलसिला चलता रहेगा। जिले का सबसे बड़ा अस्पताल होने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी यहां व्यवस्था बना पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। एक के बाद एक डॉक्टर यहां से नौकरी छोड़ रहे हैं। इनमें गायनिक डॉ. सप्तर्शी चक्रवती भी शामिल थे। जिन्होंने जुलाई माह में नौकरी छोडऩे के लिए रिजाइन लेटर प्रबंधन को थमा दिया था और तीन माह के नोटिस पीरियड में काम कर रहे थे। 25 सितंबर को उनके तीन माह पूरे होते ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और इसके बाद से यानी 26 सितंबर से जिला अस्पताल में सिजेरियन प्रसव होना बंद हो गया। इसके बाद से हर रोज दो से तीन सिजेरियन प्रसव होने वाले महिलाओं को यहां रेफर किया जा रहा है। जिले का सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में ऐसी व्यवस्था होने से मरीजों को जहां भारी परेशानी हो रही है। वहीं जिला प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल प्रबंधन पखवाड़े भर बाद भी किसी दूसरे डॉक्टर की व्यवस्था नहीं कर पाया है और मरीजों को रेफर कर अस्पताल प्रबंधन मूकदर्शक बने बैठा है।

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भर्ती करने से पहले बता रहे डॉक्टर नहीं
डॉक्टर विहीन होने से स्थिति ऐसी हो चुकी है कि प्रसव के लिए आने वाले मरीजों को भर्ती से पहले ही स्टाफ नर्सों द्वारा बताया जा रहा है कि वर्तमान में यहां गायनिक नहीं है। ऐसे में अगर नार्मल जचकी हो गई तो ठीक, नहीं तो बाहर लेकर जाना पड़ेगा। अपनी कमी बताकर अस्पताल प्रबंधन भले ही खुद को पाक साबित कर ले रहा है मगर यहां यह बताना लाजमी है कि रेफर के दौरान अगर मरीज को कुछ हो जाता है तो जिम्मेदारी किसकी होगी।

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संस्थागत प्रसव का यह हाल, 13 दिनों में केवल 26 प्रसव
डॉक्टर विहीन होने के बाद जिला अस्पताल में संस्थागत प्रसव की रफ्तार किस तरह चल रही है, यह बीते 13 दिनों के आंकड़ों को देखकर लगाया जा सकता है। विगत एक अक्टूबर से लेकर 13 अक्टूबर तक की स्थिति में यहां केवल 26 प्रसव ही हुए हैं वे भी सब नार्मल प्रसव है। जबकि इसी अवधि में 20 गर्भवती महिलाओं को यहां से रेफर किया गया है। ऐसी स्थिति में सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव को लेकर लोगों पर भरोसा कैसा होगा। यह बात किसी भी छिपी नहीं है कि ब्लॉक मुख्यालयों के अस्पतालों की स्थिति कैसी है। थोड़ा क्रेस किक्रिटल होते ही जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में यहां डॉक्टर होने से कम से कम मरीजों को कुछ राहत मिल रही थी लेकिन डॉक्टर विहीन होने के बाद से मरीजों को यहां आकर परेशानी और बढ़ जा रही है और यहां से फिर रेफर होकर बिलासपुर जाने मजबूर हैं।

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तीन माह पहले से पता था फिर भी आंख मूंदे रहे
उल्लेखनीय है कि डॉ. चक्रवर्ती ने तीन माह पहले ही नौकरी छोडऩे रिजाइन लेटर दे दिया था, और शासन के नियम के तहत तीन माह तक नोटिस पीरियड में अपनी सेवाएं दे रहे थे। इससे स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी और अस्पताल प्रबंधन को पहले से मालूम था कि तीन माह बाद वे चले जाएंगे। ऐसे में इस अवधि में ही उन्हें किसी दूसरे गायनिक की व्यवस्था कर लेनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया जिससे जिला अस्पताल केवल नार्मल जचकी तक सिमट चुका है।

जानिए, किस तरह मरीजों को हो रही परेशानी
शनिवार को फिर यहां दो केस रिफर किए गए। इनमें ग्राम देवरी की ममता पति रामसागर प्रसव पीड़ा होने पर जिला अस्पताल आए थे। यहां भी उन्हें बताया गया कि गायनिक नहीं है। बाद में उन्हें फिर रेफर कर दिया गया। इसी तरह पुछेली की अनुराधा पिता परसराम भी शनिवार को प्रसव पीड़ा होने पर जिला अस्पताल पहुंचे थे। यहां भी उन्हें डॉक्टर नहीं होने की बात कही गई और बाद में रेफर कर दिया गया।

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