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जांजगीर चंपा

प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहा अमोदी का सरकारी प्राइमरी स्कूल, शिक्षक ने बदल दी तस्वीर

School News: अपनी मेहनत और लगन से शिक्षक (Teacher) ने बनाया यह मुकाम, प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर कमरों में लगाए गए हैं कुर्सी-टेबल, यहां पढ़ाई करने वाले बच्चे हिंदी (Hindi) के अलावा अंग्रेजी व गणित (English and Maths) के सवाल फटाफट करते हैं हल

जांजगीर चंपाOct 16, 2021 / 07:18 pm

rampravesh vishwakarma

Primary school

Amodi Primary school

जांजगीर-चांपा. School News: बम्हनीडीह ब्लॉक अंतर्गत एक छोटे से गांव अमोदी का शासकीय प्राथमिक शाला स्कूल। कहने को यह सरकारी स्कूल है मगर यहां के शिक्षक गुलजार बरेठ ने अपने दम पर लगन और कड़ी मेहनत से इस स्कूल की तस्वीर ही बदल कर रख दी है।
विद्यालय में कक्षा पहली और दूसरी में बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर ही कुर्सी-टेबल लगाए हैं ताकि बच्चे खुद को निजी स्कूलों से कमतर न समझे और पढ़ाई में पूरा फोकस करे।
इसका असर है कि प्राइमरी स्कूल के बच्चे हिंदी के अलावा अंग्रेजी-गणित में इतने दक्ष है कि बड़े निजी स्कूलों के बच्चों के समान ही नजर आएंगे।


स्कूल के कमरों में वाल रिंच प्रिंटिंग कराई गई है जिससे यह स्कूल कहीं भी किसी अच्छे निजी स्कूल से कम नजर नहीं आता। स्कूल में इस समय 45 बच्चे दर्ज हैं। बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए इस स्कूल को देखने के लिए एनसीईआरटी के अधिकारी पहुंच चुके हैं।
विद्यालय में केवल दो ही शिक्षक हैं जिनमें एक वे खुद हैं और दूसरे उनके प्रभारी प्रधानपाठक। ऐसे में उनके ऊपर ही सारे बच्चों की जिम्मेदारी है, बावजूद स्कूल में बच्चों की पढ़ाई का स्तर निजी स्कूलों के बच्चों से कम नहीं है।

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सोशल मीडिया में अपलोड करते हैं एक्टिविटी
बच्चों को पढ़ाने के लिए देसी जुगाड़ से सौ से ज्यादा नवाचार उन्होंने किए हैं। स्कूल में आए दिन कई तरह की एक्टिविटी करते हैं ताकि बच्चे पढ़ाई में रुचि ले। कई एक्टिविटी को वे हमेशा फेसबुक व सोशल मीडिया में शेयर करते रहते हैं जिसे खूब पसंद किया जा रहा है।
Amodi Primary school
IMAGE CREDIT: Primary school Amodi
अभिभावकों को इतना भरोसा, निजी स्कूल में नहीं भेजते पढऩे
इस गांव के तीन से चार किमी के अंतर में ही तीन से चार निजी स्कूल भी है, लेकिन इस सरकारी स्कूल को जिस तरह से संवार दिया गया है और पढ़ाई के नवाचार को देख अभिभावकों का भरोसा इस विद्यालय के प्रति ऐसा हो गया है कि निजी स्कूलों में भेजने के बजाए अभिभावक अपने बच्चों को यहां ही पढ़ाना पसंद कर रहे हैं। गांव ही नहीं अब तो दूसरे गांव के बच्चे भी यहां दाखिला लेने लगे हैं।

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उद्देश्य: गरीब बच्चे खुद को न समझें कम
शिक्षक गुलजार बताते हैं कि उनकी सिर्फ यही मंशा है कि बच्चों को कभी न लगे वे दूसरे बच्चों से कम हैं। इसीलिए निजी स्कूलों की तरह इस स्कूल को भी संवारने की जिद उठाई। कुछ खुद से किया तो कुछ अभिभावक भी आगे आए।

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