स्कूल के कमरों में वाल रिंच प्रिंटिंग कराई गई है जिससे यह स्कूल कहीं भी किसी अच्छे निजी स्कूल से कम नजर नहीं आता। स्कूल में इस समय 45 बच्चे दर्ज हैं। बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए इस स्कूल को देखने के लिए एनसीईआरटी के अधिकारी पहुंच चुके हैं।
सोशल मीडिया में अपलोड करते हैं एक्टिविटी
बच्चों को पढ़ाने के लिए देसी जुगाड़ से सौ से ज्यादा नवाचार उन्होंने किए हैं। स्कूल में आए दिन कई तरह की एक्टिविटी करते हैं ताकि बच्चे पढ़ाई में रुचि ले। कई एक्टिविटी को वे हमेशा फेसबुक व सोशल मीडिया में शेयर करते रहते हैं जिसे खूब पसंद किया जा रहा है।
इस गांव के तीन से चार किमी के अंतर में ही तीन से चार निजी स्कूल भी है, लेकिन इस सरकारी स्कूल को जिस तरह से संवार दिया गया है और पढ़ाई के नवाचार को देख अभिभावकों का भरोसा इस विद्यालय के प्रति ऐसा हो गया है कि निजी स्कूलों में भेजने के बजाए अभिभावक अपने बच्चों को यहां ही पढ़ाना पसंद कर रहे हैं। गांव ही नहीं अब तो दूसरे गांव के बच्चे भी यहां दाखिला लेने लगे हैं।
उद्देश्य: गरीब बच्चे खुद को न समझें कम
शिक्षक गुलजार बताते हैं कि उनकी सिर्फ यही मंशा है कि बच्चों को कभी न लगे वे दूसरे बच्चों से कम हैं। इसीलिए निजी स्कूलों की तरह इस स्कूल को भी संवारने की जिद उठाई। कुछ खुद से किया तो कुछ अभिभावक भी आगे आए।