scriptपोषण आहार की कमी से जूझ रहे जिले के 1961 अतिकुपोषित , 9340 कुपोषित बच्चे | 1961 undernourished and 9340 malnourished children of the district are | Patrika News
झाबुआ

पोषण आहार की कमी से जूझ रहे जिले के 1961 अतिकुपोषित , 9340 कुपोषित बच्चे

सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति पेटलावद ब्लॉक की है, यहां 553 बच्चे अतिकुपोषित

झाबुआDec 26, 2023 / 07:03 pm

rishi jaiswal

पोषण आहार की कमी से जूझ रहे जिले के 1961 अतिकुपोषित , 9340 कुपोषित बच्चे

पोषण आहार की कमी से जूझ रहे जिले के 1961 अतिकुपोषित , 9340 कुपोषित बच्चे

झाबुआ. कुपोषण मिटाने के लिए जिला स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन कुपोषण के आंकड़े बताते हैं कि जिले को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए नाकाफी है। जिले में बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चे हैं। जबकि एनआरसी महज 6 हैं, लेकिन फिर भी अधिकतर एनआरसी खाली रहते हैं। यह स्थिति भी कुपोषण से लड़ने के उपाय पर कई सवाल खड़े कर रही है।
यूं तो कुपोषण के आंकड़े सुधारने अधिकारियों जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संस्था और आम जनता ने आंगनवाड़ी गोद लेकर कुपोषण से लड़ने की पहल की। इसके बावजूद जिले में 1961 अतिकुपोषित बच्चे हैं।सामान्य कुपोषित बच्चों का आंकड़ा 9350 तक पहुंच चुका है। लिहाजा गोद लेने की नीति भी कारगर नजर नहीं आ रही। इधर, नीति आयोग की रिपोर्ट में प्रदेश में सबसे ग़रीब जिलों में झाबुआ दूसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी आबादी में 86% लोग गरीब हैं। ये लोग दो वक्त का भोजन भी नहीं जुटा पा रहे। यही वजह है कि जिले में कुपोषण के आंकड़े भी संतोषजनक नहीं है।
बच्चों के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं

मध्यान्ह भोजन योजना, किशोरी बालिका योजना, पोषण आहार योजना एवं हाल ही में लागू की गई पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना के नाम से सरकार बच्चों को संतुलित आहार पहुंचाने के दावे तो कर रही है, लेकिन धरातल पर इन योजनाओं में लीपापोती से बच्चों के स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पड़ा। बच्चों को तय मीनू अनुसार भोजन ना देने की बात भी समय-समय पर उठाई जाती है। दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं होने से स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
जिले में कुपोषण की स्थिति –

जिले की जनसंख्या 10.25 लाख है। इनमें 2.5 लाख बच्चे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों में कुल 185468 बच्चों का सर्वे किया गया। इनमें 167830 बच्चों को पोषण आहार वितरित किया। अधिकतर बच्चे सामान्य वजन के थे। वहीं 9350 बच्चे कुपोषित और 1961 बच्चे अति कुपोषित निकले। सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति पेटलावद ब्लॉक की है।
ब्लॉक वाइज कुपोषण के आंकड़े –
ब्लॉक अति कुपोषित कुपोषित
झाबुआ 120 718
मेघनगर 333 1960
पेटलावद 553 2718
रामा 325 1613
राणापुर 360 1347
थांदला 270 994
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कुल 1961 9350

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6 पोषण पुनर्वास केंद्र का क्षमता अनुसार उपयोग नहीं –
जिले में 6 पोषण पुनर्वास केंद्र बनाए हैं। इनमें कुल 80 बेड की सुविधा है। झाबुआ में 20 , मेघनगर में 20 , पेटलावद में 10 , राणापुर में 10 , रामा में 10 और थांदला में 10 बेड उपलब्ध हैं, लेकिन साढ़े 9 हजार के लगभग कुपोषित बच्चे जिले में होने के बावजूद एनआरसी खाली पड़े रहते हैं।
आंगनबाड़ियों की हालत –
आंकड़ों के मुताबिक जिलों में 2300 आंगनबाड़ी संचालित की जा रही है। यहां 80000 से अधिक बच्चों का पंजीयन है। 1467 आंगनवाड़ी केंद्रों को अधिकारियों ने गोद लिया है। 358 अन्य व्यक्तियों ने आंगनबाड़ियों की मरम्मत और रंगाई पुताई की जिम्मेदारी उठाई है। 788 आंगनवाड़ी केंद्र किराए के भवन में संचालित हो रही है। 200 से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र जर्जर हो चुके हैं।
शासन की योजनाएं भी कारगर नहीं –
जिले वासियों के स्वास्थ्य के लिए शासन कई योजनाएं चला रही है। योजनाओं के उचित क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं देने के कारण इन योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा है। सरकारी राशन वितरण हो या स्वास्थ्य के लिए चलाए जा रहा दस्तक अभियान, इसके अतिरिक्त जिले की 375 ग्राम पंचायत में विकासखंड स्तर पर स्वास्थ्य शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है , सभी जगह सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है।
सीधी बात – अजय सिंह चौहान, सहायक संचालक, महिला बाल विकास विभाग झाबुआ
Q – आंगनवाड़ियों को अधिकारियों-जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने गोद लिया था। क्या इससे आशानुरूप परिणाम मिले।
A – जिस तरह की आशा थी ऐसे परिणाम सामने नहीं आए हैं।
Q – क्या कारण है कि अधिकतर पोषण पुनर्वास केंद्र खाली रहते हैं।
A- जागरुकता की कमी है। गरीबी भी एक कारण है। बड़ी वजह है कि कुपोषित बच्चे के अभिभावक भी इलाज में रुचि नहीं लेते।
Q – जिले में कुपोषण से निपटने के क्या प्लान है।
A- आंगनबाड़ी और हेल्थ टीम के माध्यम से बच्चों को सुपोषित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। मां और बच्चों को खान-पान के लिए जागरूक करने के लिए एनजीओ के साथ मिलकर शिविर लगाएंगे। भोजन और दवा दोनों के माध्यम से कुपोषण को रोकने के प्रयास किए जाएंगे।

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