वहीं अस्थाई टेंट से मंदिर बनाकर प्रभु श्रीराम को वहां बैठाकर आरती करके हम वहां से निकले। अयोध्या धाम के नागरिकों ने हमें बहुत सम्मान दिया। आज तंबू से हटाकर भगवान श्री राम को भव्य मंदिर निर्माण होकर प्राण प्रतिष्ठा के रूप में देख रहे हैं।
किशोर वैष्णव ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने महाकाव्य रामचरितमानस में एक श्लोक की रचना की है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा। इस दोहे का पूरा भावार्थ है कि राम जो चाहते हैं, वही होगा। मेरे सोचने से कुछ नहीं होगा। राम ने बुलाया हम गए, हम अपने को धन्य मानते हैं। अरविंद लड़ोती ने बताया कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में चारों तरफ धूल ही धूल थी। जबकि कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन वह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था। जय श्रीराम, रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, एक धक्का और दो… जैसे नारों से अयोध्या गूंज रही थी। मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई थी और विवादित गुंबद पर कब्जा कर जिसके हाथों में जो था, बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे रहे। देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया था।
दिलीप प्रधान ने बताया कि सभी धर्मों के ग्रंथों का एक ही सार है। अंत ही सत्य है। श्रीमद् भागवत गीता में श्रीकृष्ण एक स्थान पर अर्जुन को कहते हैं कि तुम निमित्त मात्र हो। इस चराचर जगत का स्वामी मैं हूं। मैं ही सब कुछ संचालित करता हूं और जो कुछ उस समय हुआ वो प्रभु के ही निमित्त हुआ हम तो माध्यम थे। कारसेवकों के बलिदान के बाद आज जब मंदिर बन राह है। ये देख कर मन प्रसंन्न है। सन 1990 में बाबरी ढांचे को ढहाने के समय भवानीमंडी उपखंड से कार सेवकों को योगदान भी रहा। आवर निवासी बालचंद भावसार 55 ने बताया कि हम भवानीमंडी रेलवे स्टेशन से फैजाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरे तो पुलिस द्वारा जगह तलाशी एवं जांच की गई। हमारे साथ अटरू से मदन दिलावर मंत्री एवं डॉक्टर ललित किशोर चतुर्वेदी भी थे। हमें जेल में बंद कर दिया एवं बाद में रिहा भी कर दिया एवं फैजाबाद से हमें पुलिस ने यूपी बॉर्डर पर लाकर छोड़ा था। अब अयोध्या में राम मंदिर बन गया एवं प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। इससे मुझे बहुत खुशी है और अब हम घर पर ही दिवाली मनाएंगे।
ये भी रहे मौजूदकार सेवकों में लालचंद प्रेमी, दिलीप शर्मा, मुकेश भावसार, कृष्णा नाथ, राजेंद्र जैन, अर्जुन हरिजन, विक्रम सिंह,स्वर्गीय गोपाल शर्मा, स्वर्गीय गिरधारी लाल राठौर, विष्णु नीलकंठ, लक्ष्मी नारायण सोनी और दिनेश टेलर मौजूद थे।
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