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झांसी के भरारी फार्म में आधे से कम दूध दे रहीं गायें, कहीं विभाग तो नहीं कर रहा मौज

10 लिटर दूध देने वाली गायें भरारी में दे रहीं 4 लीटर रोज। थारपारकर प्रजाति तोड़ रही भरोसा या विभाग कर रहा मौज। बुन्देलखण्ड के लिए गाय की सबसे उपयुक्त प्रजाति मानी जाती है थारपारकर। भरारी फार्म में पाली जा रहीं 140 गायें। इस समय 60 गायें प्रतिदिन दे रहीं सिर्फ 200 लिटर दूध, जिस पर उठ रहे सवाल।

झांसीNov 24, 2023 / 06:37 am

Ramnaresh Yadav

Tharparkar breed cow in Jhansi

इस तस्वीर को सोशल मीडिया से लिया गया है।

मामला कुछ उलझा-उलझा-सा है, लेकिन सच है। बुन्देलखण्ड के लिए गाय की सबसे भरोसेमन्द प्रजाति कही जाने वाली थारपारकर यहां दगाबाजी कर रही हैं। 10 लीटर दूध देने की क्षमता वाली यह गायें सरकार के भरारी फॉर्म में सभी सुविधाएं मिलने के बाद एवरेज में सिर्फ 4 लीटर दूध ही दे रही हैं। फॉर्म में इस समय 60 गायें रोजाना महज 200 लिटर दूध का ही उत्पादन कर रही हैं। इससे सवाल खड़े हो गए हैं। यह तय करना मुश्किल हो गया है कि गायों की देखरेख में चूक हो रही है या फिर दूध का गोलमाल हो रहा है।

बड़े स्तर पर नस्ल सुधारने का चलता है कार्यक्रम

बुन्देलखण्ड में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अनेक जतन किए जा रहे हैं। बड़े स्तर पर नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाया जा रहा है, ताकि ब्रीड में सुधार किया जा सके। इसके साथ ही मुर्रा सांड भी मंगाए गए और कृत्रिम गर्भाधान को लेकर काफी पैसा खर्च किया गया। इसी कार्यक्रम के तहत यहां थारपारकर प्रजाति की गायों को बढ़ावा दिया गया। राजस्थान की देशी नस्ल वाली इन गायों को बुन्देलखण्ड की जलवायु के अनुकूल माना गया।

140 गायों का हो रहा पालन

पशुपालकों को थारपारकर प्रजाति की गाय पालने को प्रेरित करने के लिए झांसी के भरारी फॉर्म में 140 गायों का पालन किया गया। यहां कर्मचारियों की फौज इनकी देखरेख में लगाई गई तो तीनों समय हरा चारा, भूसा व अन्य पौष्टिक आहार भी परोसा गया। शेड व गर्मी में कूलर-पंखे के साथ सर्दी में गर्म रखने का प्रबंध किया जाता है, जिसके बावजूद यह गायें यहां देशी गाय से भी कम दूध दे रही हैं।

दूध उत्पादन में गोलमाल की आशंका

विभागीय आंकड़ों बताते हैं कि इस समय यहां 140 में से लगभग 60 गायें दूध दे रही हैं, शेष गाय गर्भावस्था में हैं और दूध उत्पादन नहीं कर रही हैं। विभाग की मानें तो यह 60 गायें प्रतिदिन दोनों समय लगभग 200 लिटर दूध का उत्पादन कर रही हैं। इस हिसाब से देखें तो एक गाय प्रतिदिन औसत 3.5 लिटर दूध ही दे रही है। पशुपालन विभाग की मानें तो थारपारकर प्रजाति की गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता लगभग 10 लिटर प्रतिदिन होती है। अब सवाल यह उठ रहा है कि भरारी फार्म में इतनी सुख-सुविधाएं मिलने के बाद भी सबसे भरोसेमन्द नस्ल की गाय इतना कम दूध क्यों दे रही हैं? स्थिति में दुग्ध उत्पादन में गोलमाल की आशंकाओं को भी बढ़ा रही हैं, क्योंकि भरारी फार्म में उत्पादित दूध को बेचा भी जाता है।

ठेके पर बेचा जाता है भरारी फार्म का दूध

भरारी फार्म में पल रहीं थारपारकर प्रजाति की गायों से उत्पादित होने वाले दूध की खरीद का ठेका होता है। ठेकेदार सुबह- शाम दूध ले जाता है। इसका भुगतान विभाग में जमा कराया जाता है। यहां के स्टाफ का दूध ठेके के मूल्य पर ही दिया जाता है, इसके लिए विभाग द्वारा कूपन दिए जाते हैं। इस समय लगभग 80 लीटर दूध कूपन पर दिया जाता है, जबकि लगभग सवा सौ लीटर दूध ठेकेदार ले जाता है।

इन्होंने कहा


जानकारी देते हुए मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. अशोक कुमार कहते हैं कि थारपारकर नस्ल की गाय राजस्थान की देसी ब्रीड की है, जो बुन्देलखण्ड की जलवायु में ढल जाती हैं। थारपारकर नस्ल की गाय 9 से 10 लीटर दूध देने की क्षमता रखती हैं।
वहीं, भरारी फार्म प्रक्षेत्र प्रबंधक मनोज कुमार का कहना है कि इस समय भरारी फार्म में 140 गायें हैं, जिनमें से 55-60 गाय दूध दे रही हैं। इन गायों से प्रतिदिन 200 लिटर दूध उत्पादित हो रहा है। गर्भधारण की वजह से कई गायें दूध नहीं दे रही हैं। इससे दुग्ध उत्पादन कम हो रहा है।

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