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जोधपुर

वैज्ञानिकों की लड़ाई में राजस्थान से छिन गईं रेगिस्तानी फसलें, अब यह राज्य कर रहा रिसर्च

इस परियोजना के देश में दस नियमित केंद्र हैं, लेकिन परियोजना छूटने से काजरी नियमित केंद्र भी नहीं रहा।

जोधपुरDec 13, 2017 / 05:05 pm

Gajendrasingh Dahiya

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जोधपुर . काजरी में वैज्ञानिकों की खींचतान ने राजस्थान से ग्वार, मोठ, चंवला और कुल्थी फसलों पर १४ साल से चला आ रहा अनुसंधान का एकाधिकार खो दिया है। भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद ने वैज्ञानिकों के गैर जिम्मेदाराना रवैये के मद्देनजर अखिल भारतीय मरु दलहन परियोजना का मुख्यालय जोधपुर से कानपुर कर दिया। अब रेगिस्तान की फसलों पर यूपी वाले रिसर्च कर रहे हैं। हकीकत में यूपी में इन फसलों की पैदावार, उत्पादन और बोया गया क्षेत्रफल बहुत कम है। विशेष बात यह भी है इस परियोजना के देश में दस नियमित केंद्र हैं, लेकिन परियोजना छूटने से काजरी नियमित केंद्र भी नहीं रहा।

१४ साल तक नेशनल लीडर रहा काजरी

आईसीएआर ने वर्ष २००० में काजरी को इस प्रोजेक्ट का कॉर्डिनेटर बनाया। काजरी के अधीन देश के नौ अन्य नियमित केंद्र जयपुर , बीकानेर , गुजरात का दंातेवाड़ा, पंजाब का बठिंडा, महाराष्ट्र का परभनी, मध्यप्रदेश का ग्वालियर, कर्नाटक का बेंगलूरु और केरल का पटाम्बी था। नियमित केंद्रों के अलावा देश में ५० स्वयंसेवी केंद्र भी हैं।

यह प्रोजेक्ट केवल चार फसलों ग्वार, मोठ, चंवला और कुल्थी पर अनुसंधान के लिए था। आईसीएआर हर पांच साल में दस करोड़ रुपए अनुसंधान के लिए काजरी को देती थी। काजरी आवश्यकता के अनुसार देश के अन्य केंद्रों पर बजट भेजती थी। काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डी कुमार यह परियोजना देखते थे। वर्ष २००९ में उनके सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. अरविंद हेनरी ने कमान संभाली। वर्ष २०१४ में हेनरी की सेवानिवृत्ति के साथ ही यह परियोजना आईसीएआर ने कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान को ट्रांसफर कर दी। काजरी के तत्कालीन वैज्ञानिक डॉ. एमएन रॉय ने इसका प्रतिरोध नहीं किया। सूत्रों के मुताबिक डॉ. कुमार के सेवानिवृत्ति के साथ ही मरु दलहन परियोजना का अवसानकाल शुरू हो गया था।
बेस्ट प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर का अवार्ड मिला

इस परियोजना पर वर्ष २००० से लेकर २०१० तक डॉ. डी कुमार ने काम किया और चारों फसलों की कई नई वैराइटियां और तकनीक विकसित की। ग्वार की २०, मोठ की ८, चंवला की चार और कुल्थी की दस नई किस्में और उनकी तकनीकी तैयार की गई। बेहतरीय कार्य के लिए तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने डॉ. कुमार को बेस्ट प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर का अवार्ड दिया। वे २०१० को सेवानिवृत्त हो गए। उनकी सेवानिवृत्ति के साथ ही मरु दलहन परियोजना का अवसानकाल शुरू हो गया। डॉ. हेनरी ने परियोजना संभालने की कोशिश की, लेकिन काजरी प्रबंधन और अन्य वैज्ञानिकों का उन्हें सहयोग नहीं मिला। इस प्रोजेक्ट को लेकर काजरी के शीर्ष प्रबंधन और अन्य वैज्ञानिकों में कई बार खींचतान हुई। आईसीएआर इसी की प्रतीक्षा में थी और डॉ. हेनरी के सेवानिवृत्ति का समय ध्यान में रखते हुए आईसीएआर ने इसे कानपुर भेज दिया। गौर करने लायक बात यह है कि ग्वार, मोठ, चंवला और कुल्थी का बोया गया क्षेत्रफल, उत्पादन और पैदावार राजस्थान में ही सर्वाधिक है। कानपुर में इन फसलों का नाममात्र अस्तित्व है।
इसे मैं वापस लेकर आऊंगा

मेरे निदेशक बनने से पहले यह परियोजना कानपुर चली गई थी। मैंने आईसीएआर को पत्र लिखा है। देर-सवेर इस परियोजना को वापस काजरी में ही आना है।


-डॉ. ओपी यादव, निदेशक, काजरी, जोधपुर
बात करता हूं काजरी से

यह मामला मेरे मंत्री बनने से पहले का है इसलिए मुझे जानकारी नहीं है। मैं काजरी निदेशक से इस संबंध में रिपोर्ट लेकर आगे की कार्यवाही करता हूं।

गजेंद्रसिंह शेखावत, केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री

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