भांग की तुलना में कॉटन को दुगुनी जगह की जरूरत रहती है। एक किलो कॉटन उत्पादन के लिए 9 लीटर से ज्यादा पानी चाहिए, जबकि भांग 2 लीटर पानी में ही उग जाती है। भांग का फाइबर कॉटन की तुलना में 4 गुणा ज्यादा ड्यूरेबल है। कॉटन की तुलना में तेजी से अपघटित हो जाता है।
उत्तराखंड सरकार ने भांग की खेती को वैध करार दे रखा है। दोनों युवा उत्तराखंड में पौधे उगाकर रेशे के रूप में जयपुर लाते हैं। इन्हें कपड़ों का रूप दिया जाता है। इसके बाद पूरे देश व विदेश में कपड़ा जाता है। विदेश में सबसे ज्यादा भांग के पौधे से बने कपड़े का उपयोग चीन में किया जाता है। चीन में आर्मी की ड्रेस भी इसी कपड़े से बनाई जाती है। दोनों युवा इजिप्ट, सऊदी अरब, दुबई और ऑस्ट्रेलिया में अपने कपड़े का एक्सपोर्ट कर रहे हैं।
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यह भी उपयोगभांग के पौधे से बने कपड़े से पेंट-शर्ट के अलावा जूते, कम्बल, बैग, बेडशीट, टोपी, मौजे और टॉवल बनाए जा सकते हैं। इसके साथ ही कंसट्रक्शन मेटेरियल जिसमें हेम्पक्रीट, प्लास्टर पाउडर भी बनाया जाता है। इसके अलावा भांग के बीज, तेल, दूध और अन्य खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं, जिनको सरकार ने वैधता दे रखी है। इसके अलावा भांग के पौधे से पेपर, बायो फ्यूल, कॉस्टिमेटिक आइटम भी बनाए जाते हैं।