जैसे पकते हैं, वैसे खाते हैं
गांव में आम के पेड़ों पर लगने वाले फलों का सेवन तब करते है, जब वे पूरी तरह से पक जाते हैं। ग्रामीण कुछ कच्चे आम (कैरी) का उपयोग सब्जी व अचार बनाने में काम में ले लेते है। अपनी बहन-बेटियों व रिश्तेदारों के वहां भी कैरी व आम भेजते हैं। ग्रामीण आम को बेचते नहीं है।
नहरी पानी ने बदला नजारा
रतकुड़िया के निवासी व पूर्व केबिनेट मंत्री रामनारायण डूडी के प्रयासों से इस क्षेत्र में करीब 15 साल पहले माणकलाव-खांगटा पेयजल परियोजना से नहरी पानी पहुंचने के बाद नजारा ही बदल गया। डूडी के अनुसार बरसों से पेयजल संकट से जूझ रहे इस गांव के लोगों को पानी का मोल अच्छे से मालूम था। उन्होंने घर के सामने आम, अनार, नींबू, पपीता, सेब व चीकू के पौधे लगाए। ये पौधे बड़े होकर फल देने लगे। फिर इन फलदार पेड़ों एवं खासकर आम के पेड़ों को देखकर ग्रामीणों ने भी ऐसा करना शुरू किया। देखते ही देखते गांव के लगभग हर दूसरे घर में आम के पेड़ नजर आने लगे।