इससे भारतीय प्लेट के पश्चिमी किनारों पर स्थित जैसलमेर के कनोई फॉल्ट और रणकपुर लीनियामेंट के सक्रिय होने की आशंका पैदा हो गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय प्लेट लगातार हिमालय के पास चीन की प्लेट से टकराकर ऊर्जा मुक्त कर रही है। एेसे में सालों से सोए थार के नीचे की धरती के फॉल्ट सक्रिय हो सकते हैं। श्रीगंगानगर जिले में बुधवार दोपहर करीब पौने एक बजे लोगों ने कई स्थानों पर भूकंप के हल्के झटके महसूस किए।
अफगानिस्तान में 37.4 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 69.6 डिग्री पूर्वी देशांतर पर दोपहर 12 बजकर 36 मिनट और 32 सैकेण्ड पर भूकम्प आया। भूकम्प की गहराई अधिक होने से जोधपुर तक झटके महसूस किए गए।
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पृथ्वी के नीचे कई प्लेटें हैं। इन पर महाद्वीप और महासागर है। हिमालय पर्वत चाइना प्लेट पर है। भारतीय प्लेट का आगे का किनारा लगातार हिमालय से टकराकर धंस रहा है। इसे सिंधु सूचर जोन कहा जाता है। यहां सिंधु नदी मुड़ती है। यह भूकम्प के लिहाज से सबसे सक्रिय यानी जोन-५ में आता है। भारतीय प्लेट का पश्चिमी तट कच्छ, भुज है। भुज से शुरू होकर जैसलमेर और सम के मध्य कनोई गांव तक फॉल्ट है। रणकपुर लिनियामेंट उदयपुर से खेतड़ी तक विस्तृत है। भारतीय प्लेट के हिमालय की तरफ बढऩे से पीछे दोनों फॉल्ट के सक्रिय होने की आशंका बढ़ गई है।
पृथ्वी के नीचे कई प्लेटें हैं। इन पर महाद्वीप और महासागर है। हिमालय पर्वत चाइना प्लेट पर है। भारतीय प्लेट का आगे का किनारा लगातार हिमालय से टकराकर धंस रहा है। इसे सिंधु सूचर जोन कहा जाता है। यहां सिंधु नदी मुड़ती है। यह भूकम्प के लिहाज से सबसे सक्रिय यानी जोन-५ में आता है। भारतीय प्लेट का पश्चिमी तट कच्छ, भुज है। भुज से शुरू होकर जैसलमेर और सम के मध्य कनोई गांव तक फॉल्ट है। रणकपुर लिनियामेंट उदयपुर से खेतड़ी तक विस्तृत है। भारतीय प्लेट के हिमालय की तरफ बढऩे से पीछे दोनों फॉल्ट के सक्रिय होने की आशंका बढ़ गई है।
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पृथ्वी की तीन परतें हैं। सबसे ऊपर की परत क्रस्ट है, जो औसतन 30 किलोमीटर मोटी है। हिंदुकुश श्रेणी में यह 65 किमी मोटी है। क्रस्ट के नीचे मेंटल है, जिसकी मोटाई 2900 किलोमीटर है। मेंटल अद्र्ध तरल अवस्था में है। मेंटल के नीचे पृथ्वी का केंद्र है, जिसे कोर कहा जाता है। कोर सूर्य ही की तरह तरल से ठोस और ठोस से तरल में बदलता रहता है।
पृथ्वी की तीन परतें हैं। सबसे ऊपर की परत क्रस्ट है, जो औसतन 30 किलोमीटर मोटी है। हिंदुकुश श्रेणी में यह 65 किमी मोटी है। क्रस्ट के नीचे मेंटल है, जिसकी मोटाई 2900 किलोमीटर है। मेंटल अद्र्ध तरल अवस्था में है। मेंटल के नीचे पृथ्वी का केंद्र है, जिसे कोर कहा जाता है। कोर सूर्य ही की तरह तरल से ठोस और ठोस से तरल में बदलता रहता है।
”भारतीय प्लेट में आए दिन छोटे-छोटे भूकम्प आते रहे, तो यह फायदेमंद रहेगा। इससे पृथ्वी के अंदर की ऊर्जा बाहर आती रहेगी। इससे बड़े भूकम्प नहीं आएंगे। वैसे भी भारतीय प्लेट के आगे खिसकने से अब इसका पश्चिमी किनारा भी अधिक सक्रिय हो गया है।”
डॉ. केएल श्रीवास्तव, भू विज्ञान विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
डॉ. केएल श्रीवास्तव, भू विज्ञान विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर