कार्टिलेज हो जाएगा दुरूस्त और गठिया छूमंतर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर के विज्ञानियों का दावा है कि, इस दवा के प्रयोग से हड्डियों के जोड़ों के टिश्यू फिर अपनी पुरानी स्थिति में जा जाएंगे। और आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। कार्टिलेज की मौजूदगी से ही घुटने, कोहनी, कूल्हे आदि अंग सुचारू रुप से काम करते हैं। जब इन हड्डियों के बीच कार्टिलेज की परत कमजोर होती है। तो जोड़ों में सूजन, दर्द और अकड़न होने लगती है। और गठिया का जन्म होता है। प्रयोगशाला में बकरी और घुटना रिप्लेसमेंट के मरीजों के मृत टिश्यू पर इसके सफल प्रयोग से उम्मीद की किरण जागी है।
दवा को किया जाता है इंजेक्ट आइआइटी के बायोलाजिकल साइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रो. धीरेंद्र बताते हैं कि, इस दवा को सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज और टिशू इनबिटर आफ मेटालोप्रोटीज मिलाकर तैयार किया गया है। सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज को लैब में बनाया जा सकता है। और दूसरी दवा मालीक्यूल शरीर के अंदर ही होती हैं। उसका अंश लेकर दवा तैयार की जाती है। इस दवा को जोड़ों के बीच इंजेक्शन से पहुंचाया जाता है।
दिसम्बर तक बाजार में मिलेगी दवा प्रो. धीरेंद्र आगे बताते हैं कि, जब दवा इंजेक्ट हो जाती है तो कार्टिलेज बनाती है। इससे गठिया रोग बिना किसी सर्जरी के ठीक हो सकता है। इस आविष्कार को इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी इंडिया के तहत पेटेंट कराया गया है। जल्द ही तकनीक को फार्मूले में बदलकर उसे हस्तांतरित किया जाएगा। जल्द ही जर्नल में प्रकाशित होगा। वर्ष 2022 के अंत तक बाजार में दवा उपलब्ध हो जाएगी।
सिर्फ छह हजार में गठिया का इलाज प्रो. धीरेंद्र ने बताया कि, वैसे गठिया का अभी तक कोई सटीक इलाज नहीं है। डाक्टर दर्द निवारक दवा या व्यायाम की सलाह देते हैं। बीमारी गंभीर होने पर घुटने या कोहनी का ट्रांसप्लांट करते हैं। अगर गठिया के लक्षण शुरुआती दौर में पता चल जाते हैं तो रोग को महज 14 से 20 दिन में ठीक किया जा सकता है। इस दवा की एक वायल अधिकतम एक हजार रुपए तक होगी। शुरुआती स्टेज में पांच से छह वायल दवा के इस्तेमाल से उपचार हो सकेगा।