प्रदूषित होने वाली हवा से सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को हो रहा है। बच्चे समझ नहीं पाते कि अगर धूल और धुंआ ज्यादा है तो सांस लेते समय नाक पर रुमाल रखना जरूरी होता है और वे अनजाने में प्रदूषित कण नाक के जरिए खींच लेते हैं जो अंदर जाकर काफी नुकसान पहुंचाते हैं। बच्चों के आंतरिक अंग भी कोमल होते हैं, सो उनमें जख्म जल्दी हो जाते हैं। इसके अलावा धूपबत्ती, मच्छररोधी अगरबत्ती और डस्ट बाइट से भी बच्चों को नुकसान होता है।
अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. राजतिलक बताते हैं कि हवा में घुले हुए घातक रसायन दमा को बढ़ावा दे रहे हैं। धुंए पर तो काबू नहीं पाया जा सकता पर समय रहते दमा का इलाज कराया जा सकता है। अगर किसी को रात में खांसी हो और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, इसके अलावा थकान और अनिद्रा के अलावा एलर्जी जैसे लक्षण दिखें तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
डॉ. राजतिलक की टीम तीन वर्षों से दमा पर रिसर्च कर रही है। इसके लिए २५०० पीडि़त बच्चों का रिकार्ड जुटाया गया है। उन्होंने बताया कि हैलट की ओपीडी में सभी दवाएं और इनहेलर उपलब्ध है। इससे मरीजों को फायदा भी हो रहा है। अगर अतिरिक्त स्टाफ और मिल जाए तो बड़े पैमाने पर रिसर्च हो सकती है।
बच्चों को स्कूल से घर आते-जाते वक्त ज्यादा बचाव की जरूरत होती है। भीड़ में आने-जाने के कारण उनमें सांस रोग का ज्यादा खतरा होता है। क्योंकि इस दौरान धूल और धुंआ ज्यादा होता है। पीक आवर्स में सड़कों पर प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, ऐसे में स्कूल स्टाफ की तरफ से बच्चों को सावधानी बरतने के बारे में समझाया जाना चाहिए।