एक नहीं अनेक फाएदे
जंगल की तरह देश में जलाशह एक-एक कर घुम हो रहे हैं और इन्हें बचाने के लिए सरकार आएदिन आदेश जारी करती है। लेकिन कानपुर के शिक्षण संस्थान एचबीटीयू ने इन्हीं जलाशहों की काई से खाने के सामान व बायोफ्यूल बनाने की तकीनकि विकसित की है। इस तकनीकि के जरिए नदी, तलाब, कुंओं के अलावा अन्य जलाशयों की काई को वहां से निकाला जाएगा और उसे लोगों के उपयोग में लाया जाएगा। एचओडी और ऑयल टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर आरके त्रिवेदी कहते हैं कि इससे दो फाएदे होंगे। पहला जलाशयों की घट रही संख्या में बृद्धि तो दूसरा प्रोटीन और वाहनों में इधन के लिए प्रेट्रोल-डीजल से कुछ हद तक मुक्ति मिलेगी।
काई की खेती कर सकेंगे किसान
प्रोफेसर आरके त्रिवेदी ने बताया कि इसे प्रधानमंत्री के सामने रखा जाएगा, ताकि इसका प्रयोग कर किसानों को काई की खेती के लिए प्रेरित किया जाए। प्रोफेसर त्रिवेदी कहते हैं कि किसान अपने खेतों को जलाशहों के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। किसान खेत में पानी वाली उपज के अलावा काई की खेती भी कर सकेंगे। प्रोफेसर ने बताया कि काई की खेती बहुत कम लागत में तैयार होगी और किसान इसे सीधे शहर में स्थापित होने वाली फैक्ट्रियों में बिक्री कर अच्छी रकम कमा सकेंगे। कानपुर के अलावा देश के अन्य शहरों में काई से सामाग्री तैयार करने वाली फैक्ट्रियां लगें इसके लिए उद्यमियों से बात चल रही है और जल्द ही अच्छे नतीजे सामने होंगे।
कुछ इस तरह तैयार होगी सामाग्री
प्रोफेसर त्रिवेदी ने बताया कि काई में औसतन 40 फीसद लिपिड होता है। इस लिपिड में मोनो गिलिस्राइड, डाई गिलिस्राइड, ट्राई गिलिस्राइड, फैटी एसिड, कोलेस्ट्राल आदि होते हैं। खाने के तेल के लिए उस काई को लेते हैं, जिनमें ट्राई गिलिस्राइड की मात्रा 70 फीसद से अधिक होती है। डाई गिलिस्राइड, मोनो गिलिस्राइड की अधिकता वाली काई को ईंधन में प्रयोग किया जाता है। प्रोफेसर के मुताबिक यूरोप और यूएसए में बड़े पैमाने पर काई के तेल का प्रयोग हो रहा है। यहां पर कई फैक्ट्रियां संचालित हैं, जो व्यावसायिक रूप से इसका इस्तेमाल कर रही हैं।
पीएम को दिखाएंगे प्रोजेक्ट
प्रोफेसर त्रिवेदी ने बताया कि 22 दिसबंर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के दौरान इस प्रोजेक्टर को रखा जाएगा और देश में ज्यादा से ज्यादा काई से सामाग्री तैयार करने वाली फक्ट्रियां खोले जाने की मांग की जाएगी। प्रोफेसर ने बताया जल्द ही देश के बड़े-बड़े उद्यमियों को भी इस प्रोजेक्ट से रूबरू कराया जाएगा और काई की इंड्रस्ट्री खोले जाने की मांग की जाएगी। प्रोफेसर ने कहा कि भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए काई से जैविक ईंधन और खाद्य तेल निकाला जाना कारगर है। इससे वाहन चलाने में सहूलियत रहेगी और खाने में भी प्रयोग हो सकेगा। अभी यह प्रक्रिया महंगी है, लेकिन आने वाले समय में इसकी कीमत बहुत कम रह जाएगी।