वर्तमान में संजय सचान अध्यक्ष हैं और 2017 में अपनी पत्नी को चुनाव में उतारने का मन बना रहे हैं। कुर्मी और दलित बाहूल्य सीट पर पर कमल खिलाने के लिए भाजपा विधायक कमलरानी वरूण की साख दांव पर लगी है, वहीं सपा के पूर्व सांसद राकेश सचान भी साइकिल दौड़ाने के लिए लगे हुए हैं।
पहली बार अनारक्षित सीट घाटमपुर घोषित नगर पालिका गठन के बाद पहली बार अध्यक्ष पद अनारक्षित घोषित हुआ है। इससे चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों की बांछें खिल गई हैं। उधर वार्डों के आरक्षण में फेरबदल ने कई स्थापित सभासदों का खेल जरूर बिगाड़ दिया है। 1972 में घाटमपुर व सिहारी ग्राम पंचायतों को मिलाकर टाउन एरिया का गठन किया गया था। जिसे 1981 में जनता पार्टी शासनकाल के दौरान नगर पालिका का दर्जा दे दिया गया था।
1989 में पहली बार हुए चुनाव में राम स्वरूप गुप्ता (लल्लू बाबू) नगर पालिका अध्यक्ष बने थे। तब तक एकल पदों में आरक्षण का प्रावधान नहीं था। 1995 व 2000 में हुए निकाय चुनाव में यहां पालिका अध्यक्ष का पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हुआ था। इसपर क्रमशः स्व. सूर्यपाल यादव व राजेश चौरसिया निर्वाचित हुए थे। 2006 में महिला के लिए आरक्षित होने के चलते नीलम चौरसिया नगर पालिका अध्यक्ष बनी थी और 2012 में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित अध्यक्ष की कुर्सी पर संजय सचान चुनाव जीते थे।
गुड्डू पंडित सहित कई सभासदों का खेल बिगड़ा घाटमपुर नगर पालिका में 29 वार्ड हैं, जिनका आरक्षण घोषित होने से कई कद्दावर सभासदों की गणित गड़बड़ा गई है और अब वह आसपास मोहल्लों में नजरें गड़ाने लगे हैं। कई बार से अनारक्षित अशोकनगर उत्तरी से राकेश तिवारी गुड्डू पंडित लगातार तीन बार सभासद निर्वाचित हो रहे थे। पिछली बार तो वह निर्विरोध सभासद चुने गए थे, लेकिन इस बार इस सीट को महिला के लिए आरक्षित घोषित कर दिया गया है। लगातार तीन बार से सभासद बन रहे नफीस कुरैशी का वार्ड कटरा भी इस बार महिला के लिए आरक्षित हो गया है। दो बार सभासद बने राजपूत साहू का वार्ड बसंत बिहार इस बार अनुसूचित महिला के लिए आरक्षित हो जाने के बाद उनके नगर पालिका सदन पहुंचने में रोड़ा है। इसके अलावा कई अन्य वार्डों से भी सभासद बनने की तैयारी में जुटे लोगों के सपनों पर आरक्षण ने तुषारापात किया है।
भाजपा विधायक और सपा के पूर्व सांसद के बीच जंग
घाटमपुर विधानसभा में पहली बार भगवा ध्वज फहराया। यहां से भाजपा की कमलरानी वरूण विधायक चुनी गईं। ये सीट कुर्मी और दलित बाहूल्य मानी जाती है। सपा के पूर्व सांसद यहां से विधायक रहे और सीट आरक्षित होने के बाद बसपा 2007 में बसपा के प्रत्याशी ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन 2012 के चुनाव में राकेश सचान इंद्रजीत सरोज को साइकिल का टिकट दिलवाकर मैदान में उतारा और वो यहां से चुनाव जीते, लेकिन 2017 के चुनाव में सपा-बसपा के किले को भाजपा ने भेद दिया और कलमरानी ने कमल खिला दिया। नगर पालिका अध्यक्ष की जंग में दोनों नेताओं की साख दांव पर लगी है। पूर्व रिटायर्ड शिक्षक सुशील निगम कहते हैं कि घाटमपुर के मतदाताओं ने दल से ऊपर प्रत्याशी को परखा और उसी को वोट देकर जिताया है। सुशीन निगम बताते हैं कि राममंदिर के आंदोलन के दौरान मतदाताओं ने दल को नजरअंदाज कर कैंडीडेट के नाम पर मुहर लगाया था।
सपा का रहा है दबदबा, भाजपा पहली बार फ्रंटफुट पर
करीब 35 हजार की आबादी वाले बिल्हौर नगर पालिका परिषद में 25 वार्ड हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 15078 है जबकि महिला मतदाता 7085 और पुरुष मतदाता 7993 हैं। आशिकबाग मोहल्ला, त्रिवेणीगंज, बलरामनगर, वैष्णो नगर, बिल्हौर देहात, शांति नगर, सुभानपुर, रहमतपुर, दोहलियापुर, मुरादनगर आदि गांव के मतदाता पहली बार नगर पालिका के चुनाव में भाग लेंगे।
ये ऐसे गांव हैं जो पूरी तरह नगर पालिका की सीमा से सटे हुए थे जिन्हें नगर पालिका के क्षेत्राधिकार में शामिल कर लिया गया है। बिल्हौर नगर पालिका सीट पर सपा का कब्जा है और यहां से निर्भय सिंह अध्यक्ष हैं। इसके पहले इनकी पत्नी राकेश देवी अध्यक्ष का चुनाच जीती थीं। इसबार ये सीट सामान्य है, जिसके चलते सपा, बसपा और भाजपा में कई दावेदार टिकट मांग रहे हैं।
यहां से भाजपा के विधायक भगवती शरण सागर के साथ ही पूर्व मंत्री इन्होंने सपा के शिवकुमार बेरिया और अरूणा कोरी की साख भी दांव पर लगी है। इसके अलावा बसपा के कमलेश दिवाकर भी अपनी पत्नी को चुनाव के मैदान पर उतरने का मन बनाए हुए हैं और इसके लिए उन्होंने दावेदारी भी की है।