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कानपुर

रोते-रोते बोले प्रवासी मजदूर, चाहे कुछ भी हो जाए अब गांव छोडक़र नहीं जाएंगे

जिनके भरोसे घर छोड़ा, उन्हीं मालिकों से मिला धोखा भगवान किसी तरह जिंदा घर तक पहुंचा दे बस

कानपुरMay 24, 2020 / 11:44 am

आलोक पाण्डेय

रोते-रोते बोले प्रवासी मजदूर, चाहे कुछ भी हो जाए अब गांव छोडक़र नहीं जाएंगे

रोते-रोते बोले प्रवासी मजदूर, चाहे कुछ भी हो जाए अब गांव छोडक़र नहीं जाएंगे

कानपुर। दिल्ली-मुंबई समेत कई बड़े शहरों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का शहरों से मोहभंग हो चुका है। लॉकडाउन के जख्म पर मालिकों ने नमक छिडक़ दिया तो वे तड़प उठे और जमी-जमाई गृहस्थी छोड़ अपने घरों लौट रहे हैं। जिन्हें वाहन मिल गया तो सवार हो लिए और जिन्हें कोई सहारा ना मिला तो पैदल ही सफर पर निकल पड़े। दिल्ली से निकले मजदूर कानपुर के कई इलाकों से होकर भी गुजरे। इस दौरान समाजसेवियों की राहत ने उनके जख्मों को राहत दी तो वे फफककर रो पड़े। लोगों ने दिलासा देकर शांत कराया तो आंसू पोछते हुए मालिकों को कोसने लगे।
मेहनत के बदले धोखा ही मिला
बिहार के विमल दिल्ली की एक फैक्ट्री में प्लास्टिक का सामान बनाते हैं। बोले जब काम ढूंढने गया था तो बताया गया कि महीने के १० हजार मिलेंगे और जब काम करने लगे तो फिर हाथ पर केवल ८ हजार ही दिए। बोले हर महीने दो हजार जमा हो रहा है, इमरजेंसी में मिलेगा। जब लॉकडाउन की इमरजेंसी में काम बंद हुआ तो पैसे की जरूरत पड़ी। मांगने पर केवल महीने भर की तनख्वाह देकर टरका दिया। पैसा एक महीने में ही खत्म हो गया और जब दोबारा जरूरत पड़ी तो मालिक मिले ही नहीं। घर का सामान बेचकर पेट्रोल का इंतजाम किया।
घर पहुंच जाऊं बस, अब कहीं नहीं जाऊंगा
पत्नी को बाइक पर बैठाकर निकले सीतापुर के अजमल खान नौबस्ता फ्लाईओवर के नीचे मिले तो दुखी और परेशान थे। पूछने पर बोले-बस किसी तरह जिंदा घर पहुंच जाएं, यही काफी है। सब कुछ सामान्य होने का इंतजार कर रहे लोग जब हताश हो गए अपने गांव लौटने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया। सभी यही कह रहे थे कि गांव में मुसीबत सह लेंगे लेकिन अब परदेस नहीं जाएंगे।
पैरों में पड़ गए छाले, थकान से बुरा हाल
अमजल पुणे में नौकरी करते थे। जब रोटी के लाले पड़ गए तो पत्नी को बाइक पर बैठाया और निकल पड़े। बाइक चलाते-चलाते थक गए तो नौबस्ता फ्लाईओवर के नीचे थोड़ी देर बैठ गए थे। पूछने पर फफक पड़े। बोले कि बाइक का इंजन इतना गर्म हो गया है कि पैर में छाले पड़ गए हैं। ऊपर से बैग लेकर बाइक से इतनी लंबी दूरी चलना मुसीबत से कम नहीं हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। रास्ते में कई जगह हादसे की चपेट में आते-आते बचे और भूख-प्यास से बेहाल हो गए हैं।
बच्चे की तबियत बिगड़ी तो लोडर वाले ने उतार दिया
आगरा में सेंट्रल के पास रहने वाले त्रिभुवन पत्नी सावित्री, दो बच्चों तीन साल के राजुल और डेढ़ साल के आयुष को लेकर प्रयागराज के दारागंज में रहते थे। मेहनत-मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे थे कि लॉकडाउन में खाने के लाले पड़ गए। आने-जाने की ढील मिली तो तीन दिन पहले कभी पैदल तो सवारी का सहारा लेते शनिवार सुबह नौबस्ता बाईपास पहुंचे। त्रिभुवन ने बताया कि महारापुर से लोडर में परिवार समेत सवार हुए थे। बड़े बेटे को नौबस्ता से पहले उल्टी आई तो लोडर रुकवाई थी। बच्चे को उल्टी कराकर दोबारा बैठने लगे तो ड्राइवर ने सामान उतरवा दिया और बोला, अब आगे नहीं ले जाऊंगा।

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