बिहार के विमल दिल्ली की एक फैक्ट्री में प्लास्टिक का सामान बनाते हैं। बोले जब काम ढूंढने गया था तो बताया गया कि महीने के १० हजार मिलेंगे और जब काम करने लगे तो फिर हाथ पर केवल ८ हजार ही दिए। बोले हर महीने दो हजार जमा हो रहा है, इमरजेंसी में मिलेगा। जब लॉकडाउन की इमरजेंसी में काम बंद हुआ तो पैसे की जरूरत पड़ी। मांगने पर केवल महीने भर की तनख्वाह देकर टरका दिया। पैसा एक महीने में ही खत्म हो गया और जब दोबारा जरूरत पड़ी तो मालिक मिले ही नहीं। घर का सामान बेचकर पेट्रोल का इंतजाम किया।
पत्नी को बाइक पर बैठाकर निकले सीतापुर के अजमल खान नौबस्ता फ्लाईओवर के नीचे मिले तो दुखी और परेशान थे। पूछने पर बोले-बस किसी तरह जिंदा घर पहुंच जाएं, यही काफी है। सब कुछ सामान्य होने का इंतजार कर रहे लोग जब हताश हो गए अपने गांव लौटने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया। सभी यही कह रहे थे कि गांव में मुसीबत सह लेंगे लेकिन अब परदेस नहीं जाएंगे।
अमजल पुणे में नौकरी करते थे। जब रोटी के लाले पड़ गए तो पत्नी को बाइक पर बैठाया और निकल पड़े। बाइक चलाते-चलाते थक गए तो नौबस्ता फ्लाईओवर के नीचे थोड़ी देर बैठ गए थे। पूछने पर फफक पड़े। बोले कि बाइक का इंजन इतना गर्म हो गया है कि पैर में छाले पड़ गए हैं। ऊपर से बैग लेकर बाइक से इतनी लंबी दूरी चलना मुसीबत से कम नहीं हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। रास्ते में कई जगह हादसे की चपेट में आते-आते बचे और भूख-प्यास से बेहाल हो गए हैं।
आगरा में सेंट्रल के पास रहने वाले त्रिभुवन पत्नी सावित्री, दो बच्चों तीन साल के राजुल और डेढ़ साल के आयुष को लेकर प्रयागराज के दारागंज में रहते थे। मेहनत-मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे थे कि लॉकडाउन में खाने के लाले पड़ गए। आने-जाने की ढील मिली तो तीन दिन पहले कभी पैदल तो सवारी का सहारा लेते शनिवार सुबह नौबस्ता बाईपास पहुंचे। त्रिभुवन ने बताया कि महारापुर से लोडर में परिवार समेत सवार हुए थे। बड़े बेटे को नौबस्ता से पहले उल्टी आई तो लोडर रुकवाई थी। बच्चे को उल्टी कराकर दोबारा बैठने लगे तो ड्राइवर ने सामान उतरवा दिया और बोला, अब आगे नहीं ले जाऊंगा।