लॉकडाउन के हालातों को सलीम ने किया बयां मो. इकबाल ने बताया कि दादा नूर मोहम्मद रहमतुल्ला के बाद पिता मो. सलीम पुतला निर्माण का कार्य करते थे। कोरोनाकाल में पिता के इंतकाल के बाद अब वह भी यही काम कर रहे हैं। कोरोनाकाल की पीड़ा को बयान करते हुए उन्होंने बताया कि पिता को 50 वर्ष और मुझे 28 वर्ष यह पुश्तैनी काम करते हो गया, लेकिन ऐसा बुरा समय कभी नहीं आया, लेकिन कार्यक्रम कराने वाली कमेटी के पदाधिकारियों ने उस विपत्ति के समय उनकी हर तरह से मदद की।
इस तरह तैयार किए जाते हैं पुतले इकबाल कहते हैं कि उनके बनाए हुते पुतले कानपुर, कानपुर देहात, हमीरपुर और औरैया सहित कई जिलों में जाते हैं। एक पुतले को बनाने में 20 से 25 दिन का समय लगता है। इसमें रंगीन पेपर, बांस, लकड़ी, सुतली और रंगो का प्रयोग किया जाता है। झींझक के लिए बनाए गए रावण के पुतले के बारे में उन्होंने बताया कि दहन के समय इसके सर और मुंह से आग के अंगारे निकलेंगे। इस पुतले की ऊंचाई करीब 60 फीट है। इसके बाद पुतले में आतिशबाजो के द्वारा आतिशबाजी लगाई जाएगी।