एक सभा में किसी वक्ता ने उपस्थित लोगों से पूछा – “अगर आपके पास 86,400 रुपये हैं और कोई भी लुटेरा उसमें से 10 रुपये छीन कर भाग जाए तो आप क्या करेंगे? क्या आप उसके पीछे भागकर लुटे हुए 10 रुपये वापस पाने की कोशिश करेंगे या आप अपने बचे हुए 86,390 को हिफाज़त से लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे?”
बहुमत ने कहा कि हम 10 रुपये की तुच्छ राशि की अनदेखी करते हुए अपने बचे हुए पैसे लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे। प्रश्नकर्ता ने कहा: “आप लोगों का सत्य और अवलोकन सही नहीं है। मैंने देखा है कि ज्यादातर लोग 10 रुपये वापस लेने की फ़िक्र में चोर का पीछा करते हैं और परिणाम के रूप में, उनके बचे हुए 86,390 रुपये भी हाथ से धो बैठते हैं।”
हैरान होकर सभी पूछने लगे “ यह असंभव है, ऐसा कौन करता है?” वक्ता ने कहा – “ये 86,400 वास्तव में हमारे एक दिन के कुल सेकंड हैं। 10 सेकंड की बात लेकर, या किसी भी 10 सेकंड की नाराज़गी और गुस्से में, हम बाकी के पूरे दिन को सोच, कुढ़न और जलन में गुज़ार देते हैं और हमारे बचे हुए 86,390 सेकंड भी नष्ट हो जाते हैं।”
सीख इस दृष्टांत का सार यही है कि कुछ चीज़ों को अनदेखा भी करें। ऐसा न हो कि चन्द लम्हों का गुस्सा या नकारात्मकता आपसे आपके सारे दिन की ताज़गी और खूबसूरती छीनकर ले जाए। प्रस्तुतिः आर्येन्द्र यादव, कासगंज
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