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कटनी

स्टूडेंट्स ने जाना गोबर कंपोस्ट, नाडेप टांका खाद निर्माण का तरीका, इस योजना के तहत दिया जा रहा है जैविक कृषि प्रशिक्षण

लोगों की सेहत फिछले दो दशक से काफी प्रभावित हुई है। इसके पीछे की मुख्य वजह है कृषि में रासायनिक खाद का कीटनाशकों का दखल। अधिक मुनाफा के चक्कर में किसान इनका उपयोग करते हैं, लेकिन उनके दुष्परिणाम भयावह सामने आ रहे हैं। इसको लेकर अब किसानों के साथ विद्यार्थी भी जागरुक हो रहे हैं।

कटनीFeb 29, 2020 / 11:08 am

balmeek pandey

Organic agriculture training being imparted to students

Organic agriculture training being imparted to students

कटनी. लोगों की सेहत फिछले दो दशक से काफी प्रभावित हुई है। इसके पीछे की मुख्य वजह है कृषि में रासायनिक खाद का कीटनाशकों का दखल। अधिक मुनाफा के चक्कर में किसान इनका उपयोग करते हैं, लेकिन उनके दुष्परिणाम भयावह सामने आ रहे हैं। इसको लेकर अब किसानों के साथ विद्यार्थी भी जागरुक हो रहे हैं। तिलक कॉलेज के विद्यार्थी जैविक खेती का मंत्र सीख रहे हैं, ताकि वे पैरेट्स को रासायनिक खेती से तौबा करा सकें। शासकीय तिलक स्नातकोत्तर महाविद्यालय कटनी में स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन योजनान्तर्गतप्राचार्य डॉ. सुधीर खरे के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. वीके द्विवेदी, सहप्रभारी डॉ. जीएम श्रीवास्तव के सहयोग से जैविक कृषि पाठशाला नैगवां के संचालक रामसुख दुबे द्वारा स्वरोजगार एवं स्वाववलंबन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बच्चों को न सिर्फ थ्योरिकल बल्कि प्रैक्टिकल के माध्यम से जैविक कृषि में परिपक्व किया जा रहा है। छात्र-छात्रा भी बड़ी रुचि के साथ जैविक कृषि को अपना रहे हैं।

 

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दिया गया यह प्रशिक्षण
विद्यार्थियों को गोबर कंपोस्ट, नाडेप टांका खाद निर्माण का प्रशिक्षण छात्रों को गोबर कंपोस्ट बनाने की सामान्य एवं इंदौर विधि से गोबर, कचरा, फसल अवशेष, खरपतवार आदि से खाद बनाने की तकनीकी जानकारी दी गई। बताया गया कि बिना कम्पोस्ट बनाये गोबर खाद का उपयोग करने से खाद में पोषक तत्वों की कमी फसलों में खरपतवारों की अधिकता भूमि में दीमक लगने की आशंका अधिक रहती है। विद्यार्थियों को बताया कि खाद निर्माण के लिए गड्ढ़ा 3 फीट का खोदना चाहिए। अधिक खोदने से खाद बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता काम हो जाती है

 

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इन खादों की भी दी जानकारी
नाडेप टांका खाद निर्माण का प्रशिक्षण बारीकी से दिया गया। कम लागत, तकनीकी जीरो, बजट फार्मिंग के अंतर्गत 12 फीट लंबा, 5 फीट चौड़ा एवं 3 फीट ऊंचा पक्का टटिया, कच्चा नाडेप बनाकर 2 दिन में 10 से 12 परत में भरने की विधि बताई। प्रत्येक परत में 6 इंच कचरा डालकर उसके ऊपर 100 लीटर पानी में 4 किलोग्राम गोबर घोलकर छिड़काव करना बताया। उसके ऊपर 50 से 60 किलोग्राम मिट्टी डालते हैं। भरने के बाद मिट्टी से छपाई करकेगोबर से लिपाई कर देते हैं। 4 माह में 25 से 30 क्विंटल खाद प्राप्त होती है जो 1 हेक्टेयर फसल के लिए पर्याप्त है। विद्यार्थियों को बताया कि खाद में सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं।

 

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मिट्टी परीक्षण एवं परिणाम के विश्लेषण का प्रशिक्षण
इसी क्रम में मिट्टी परीक्षण एवं परिणाम के विश्लेषण का प्रशिक्षण दिया गया। पौधपोषण के लिए फसलों को 16 प्रकार के तत्वों की आवश्यकता के विषय पर जानकारी दी गई। दुबे ने बताया कि प्रत्येक 3 वर्ष में मिट्टी परीक्षण करवाना चाहिए। इसके लिए अप्रैल, मई में गेंहू कटाई के बाद प्रति हेक्टेयर 10 से 15 स्थान चिन्हित कर गड्ढे 6 से 9 इंच खोदकर एक स्थान से 500 ग्राम ऊपर से नीचे की मिट्टी की परत निकालते हैं। सभी जगह की मिट्टी मिलाकर 500 ग्राम मिट्टी का नमूना निर्धारित प्रारूप में जांच के लिए मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला भेजने की जानकारी दी गई। प्राप्त मिट्टी परीक्षण परिणाम के विश्लेषण के आधार पर पीएच मान अम्लीयता, छारीयता, विधुत चालकता, जैविक कार्बनिक, खाद एवं नत्रजन, स्फुर, पोटाश आदि की जानकारी दी गई। जमीन की आवश्यकता के अनुसार अनुसार खाद का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया।

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