मछली में हो चुका है प्रयोग, पाउच के पानी से मनुष्यों में आती है दुर्बलता, एनजीटी के प्रतिबंध के बाद भी नुकसानदायक पॉलीथिन के उपयोग पर नहीं लग रहा विराम
कटनी•Feb 03, 2019 / 10:27 pm•
dharmendra pandey
drinking water
कटनी. पॉलीथिन के उपयोग पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के प्रतिबंध लगाने के बाद भी जिले में इसका खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है। जिले में पॉलीथिन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने को लेकर जिम्मेदार भी सजग दिखाई नहीं दे रहे हैं। पॉलीथिन हमारे स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है इस पर शोध भी हो चुका है। यूनेस्को व डब्ल्यूएचओ के लिए शोध कर रहे रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के पूर्व डीन डॉ. केके वर्मा ने बताया कि पॉलीथिन नष्ट होने वाली सामग्री नहीं है। यह गलकर टुकड़ों में हो जाएगी, लेकिन नष्ट नहीं होगी। उन्होंने बताया कि पॉलीथिन के उपयोग से होने वाले नुकसान का पता लगाने के लिए मछली पर शोध किया गया। जिसमें यह पाया गया कि मछलियों के शरीर में परिवर्तन हो गया। नर मछली मादा में परिवर्तित हो गई। डॉ. वर्मा ने बताया कि इसी तरह से जब कोई भी खाद्य सामग्री व पेय पदार्थ 24 घंटे से अधिक तक पॉलीथिन में रखा रहता है तो पॉलीथिन के कैमिकल उस पदार्थ में समा जाते है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक की बोतलों में 24 घंटे से अधिक समय तक पानी रखा रहने के बाद जब हम इसका सेवन करते है तो हमारे शरीर में भी दुर्बलता आती है। उन्होंने कहा कि चाय दुकानों व होटलों में डिस्पोजल की जगह मिट्टी के कुल्हड़ का उपयोग किया जाए। तो इससे मनुष्य का शरीर भी स्वास्थ्य रहेगा और पर्यावरण भी शुद्ध बना रहेगा।
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