आजादी मिलने पर 15 अगस्त 1947 को खंडवा में सबसे पहले इन्होंने ही एतिहासिक घंटाघर पर झंड़ा फहराया। गोपाल सोनी के बेटे अरूण सोनी और प्रदीप सोनी ने बताया कि देश की आजादी के बाद भी पिता जी का अनुशासन कम नहीं हुआ, वे जब तक रहे तब तक उनके आगे कोई भी समाज और परिवार के सिंद्धातों के खिलाफ दो शब्द भी नहीं बोल सकता था। इसलिए आज भी उनके छह बेटों का पूरा परिवार संयुक्त और विकसित है। उनके नाम से वर्तमान में परिवार का नाम भी रोशन हो रहा है। परिवार को उन्ही के नाम से जाना जाता है।
the freedom fighter of the english clubs did eat the blood bled has no given up patriotism 1971 की जंग में 7 सैनिक शामिल हुए थे
पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की जंग में खंडवा के 7 बहादुर सिपाहियों ने हिस्सा लिया था। पूर्व सैनिक बताते हैं 16 दिसंबर को भारतीय सेना ने दुश्मन को धूल में मिलाया था। दुश्मन सेना के 90 हजार से अधिक सैनिकों को बंदी बनाया था। जंग में शामिल हुए शहर के सूबेदार गंगाशरण तिवारी, सिपाही विमलचंद जैन, हवलदार गौरीशंकर, सिपाही विजयशंकर गिरी, लायंस नायक बीकाराम, सिपाही गनपतलाल, नायक अमरचंद राठौर बताते हैं बम धमाकों व गोलियों की बौछार के बीच हम देश के लिए लड़े और दुश्मन को धूल चटाई। दोनों ओर से गोलियां चल रही थी। दुश्मन का चेहरा देखे बिना ही दनादन फायर करते आगे बढ़ते गए। दुष्मों को हमारी सेना ने धूल चटा दी थी। लंबी जंग के बाद आखिर 16 दिसंबर 1971 को दुश्मन सेना ने हथियार डालकर घुटने टेक दिए। भारत ने जंग जीत ली। दुश्मन को जो सबक सिखाया वो हमेशा याद रखेंगे। अब भी वो दिन याद करते हैं तो रगों में खून का बहाव तेज हो जाता है।