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खंडवा

देशभक्ति का ऐसा जुनूनः अंग्रेजों की लाठियां खाईं, खून से लथपथ हुए, लेकिन पीछे नहीं हटे…

मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के आखिरी स्वतंत्रता सेनानी ने अंग्रेजों के सामने दम नहीं भरा। देश के आखिर लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को धूल चटाई।

खंडवाJan 09, 2018 / 12:59 am

जितेंद्र तिवारी

Freedom fighters who fought for the country from the British

Freedom fighters who fought for the country from the British

खंडवा. खंडवा के स्वतंत्रता सेनानी पर देशभिक्त का ऐसा जुजून की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए खून से लहूलुहान भी हुए, लेकिन पीछे नहीं हटे। देश के लिए लड़ाई लड़ते हुए कई बार जेल जाना पड़ा। बावजूद इसके इरादे टस से मस नहीं हुए। दिन वा दिन देशभक्ति का नशा बढ़ाता ही गया। जिले के आखिरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे बाबू लाल सोनी के रग-रग में देशभक्ति का जुनून और अनुशासन भरा हुआ था। कई बार अंग्रेजों से मार खाई, खून से लहूलुहान भी हुए, जेल गए, इसके बावजूद देशभक्ति कम होने के बजाए बढ़ती जाती। जेल से छूटते ही देश आजाद कराने के लिए निकल पड़ते। 29 अगस्त 2013 को 96 वर्ष की अवस्था में दुनिया से विदा होने वाले गोपाल सोनी किशोरा वस्था से ही देश की आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। शादी हुई बच्चे भी हुए, लेकिन परिवार से ज्यादा उनके सिर पर भारत माता के लिए प्यार था। पुलिस से बचने के लिए वे कई दिनों तक असीरगढ़ के जंगलों में डेरा डालकर रहते और वहीं से आंदोलन की रणनीति संचालित करते। पुलिस आए दिन घर पर छापेमारी करती रहती थी, लेकिन फुर्तिलापन और सजगता के चलते वे कभी भी पकड़ में नहीं आए। बाद में गांधी जी के साथ नमक कानून तोड़ो आंदोलन के हिस्सा बने। देश को आजाद कराने के लिए कई बड़े आंदोलनों में भूमिका निभाने पर लाहौर जेल में दो माह तक बंद रहे। बाद में वे सुभाष चन्द्र बोस की सेना में शामिल हो गए।
फहराया था पहला तिरंगा
आजादी मिलने पर 15 अगस्त 1947 को खंडवा में सबसे पहले इन्होंने ही एतिहासिक घंटाघर पर झंड़ा फहराया। गोपाल सोनी के बेटे अरूण सोनी और प्रदीप सोनी ने बताया कि देश की आजादी के बाद भी पिता जी का अनुशासन कम नहीं हुआ, वे जब तक रहे तब तक उनके आगे कोई भी समाज और परिवार के सिंद्धातों के खिलाफ दो शब्द भी नहीं बोल सकता था। इसलिए आज भी उनके छह बेटों का पूरा परिवार संयुक्त और विकसित है। उनके नाम से वर्तमान में परिवार का नाम भी रोशन हो रहा है। परिवार को उन्ही के नाम से जाना जाता है।

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1971 की जंग में 7 सैनिक शामिल हुए थे
पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की जंग में खंडवा के 7 बहादुर सिपाहियों ने हिस्सा लिया था। पूर्व सैनिक बताते हैं 16 दिसंबर को भारतीय सेना ने दुश्मन को धूल में मिलाया था। दुश्मन सेना के 90 हजार से अधिक सैनिकों को बंदी बनाया था। जंग में शामिल हुए शहर के सूबेदार गंगाशरण तिवारी, सिपाही विमलचंद जैन, हवलदार गौरीशंकर, सिपाही विजयशंकर गिरी, लायंस नायक बीकाराम, सिपाही गनपतलाल, नायक अमरचंद राठौर बताते हैं बम धमाकों व गोलियों की बौछार के बीच हम देश के लिए लड़े और दुश्मन को धूल चटाई। दोनों ओर से गोलियां चल रही थी। दुश्मन का चेहरा देखे बिना ही दनादन फायर करते आगे बढ़ते गए। दुष्मों को हमारी सेना ने धूल चटा दी थी। लंबी जंग के बाद आखिर 16 दिसंबर 1971 को दुश्मन सेना ने हथियार डालकर घुटने टेक दिए। भारत ने जंग जीत ली। दुश्मन को जो सबक सिखाया वो हमेशा याद रखेंगे। अब भी वो दिन याद करते हैं तो रगों में खून का बहाव तेज हो जाता है।

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