इसमें सिंगापुर, इजराइल, रूस, सउदी अरब, भूटान, नार्वे, बुलगरिया, फिनलैण्ड, हंगरी, इंडोनेशिया, नीदरलैण्ड, रोमानिया, ओमान, स्वीडेन, थाईलैण्ड, यूएई और लक्जमवर्ग सहित ३१ देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। १५ से अधिक देशों के राजदूत और उच्चायुक्त ने हिस्सा लिया। मित्रा ने सभी को ग्लोबल समिट में हिस्सा लेने के लिए आग्रह किया। उन्होंने बताया कि बैठक सफल रही। इस बार समिट में ३१ से अधिक देश के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। औद्योगिक संगठन फिक्की बंगाल ग्लोबल समिट २०१८ का समिट पार्टनर और केपीएमजी नॉलेज पार्टनर है। परिचर्चा में स्वागत भाषण फिक्की के महासचिव संजय बसु ने दिया। इस मौके पर राज्य के उद्योग सचिव एस किशोर और दिल्ली में राज्य के रेसीडेन्ट कमीशनर डॉ. कृष्ण गुप्ता, संयुक्त सचिव पार्थ सथपथी और पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम की प्रबंध निदेशक वंदना यादव उपस्थित थीं।
प्रशासनिक अधिकारियों की प्रशिक्षण नीति तैयार कर रही है राज्य सरकार
पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक निर्दिष्ट प्रशिक्षण नीति तैयार करने का संकेत दिया है। इसमें जन सेवा पर विशेष जोर दिया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों में कागजी फाइलों के बदले डिजिटल सेवा को बढ़ावा देना आवश्यक माना जा रहा है।
अधिकारियों को दूसरे देशों के प्रशासनिक तौर तरीके जानने और समझने के लिए अफसरों को विदेश भेजने की बात भी उक्त नीति में कही गई है। राज्य सचिवालय के सूत्रों ने बताया कि राज्य प्रशासन ने विभागीय स्तर पर अधिकारियों के काम करने के तरीके पर एक सर्वे कराया था। जिसमें यह पाया गया कि राज्य के अधिकारी प्राकृतिक आपदा और हिंसा के दौरान पीडि़तों की भावनाओं को समझ नहीं पाए थे।
इस कारण उन्हें पीडि़तों का कोपभाजन भी होना पड़ा है। नागरिकों की जरूरतें तथा उनकी भावनाओं का ख्याल रखने में असंगति पाई गई है। राज्य प्रशासन का मानना है कि अधिकारियों को उपयुक्त प्रशिक्षण मिला होता तो आपातकालीन स्थिति में का सामना करने में इन्हें परेशानी नहीं होती। सूत्रों ने बताया कि नई प्रशिक्षण नीति में जन सेवा पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
सरकारी कार्यालयों में कागजी फाइलों के बदले डिजिटल पद्धति को देखते हुए सरकार चाहती है कि संबंधित विभाग के अधिकारी के लिए आईटी के क्षेत्र में विशेष जानकारी रखना बाध्यता होगी। सूत्रों ने बताया कि प्रशासनिक सेवा को इच्छुक व्यक्ति डब्ल्यूबीसीएस परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद किसी विभाग का अधिकारी बन जाता है पर समुचित प्रशिक्षण नहीं मिलने के कारण उन्हें जनसेवा को लेकर उत्पन्न परिस्थितियों का मुकाबला करने में परेशानी होती है। इसलिए ऐसे अधिकारियों के लिए एक प्रशिक्षण नीति का होना जरूरी समझा जा रहा है।