इसके अलावा सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी डॉग बाइट के मामले सामने आ रहे हैं। बावजूद इसके नगरीय निकाय से लेकर ग्राम पंचायतों में कुत्तों के बधियाकरण को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। ऐसी ही स्थिति रही तो रैबिज का भी शिकार होने की आशंका बढ़ गई है। चिकित्सक का कहना है कि पागल कुत्तों के काटने से रैबिज का खतरा रहता है, लेकिन सामान्य तौर पर यह जानकारी होती नहीं है। इस कारण डॉग बाइट का शिकार होने पर तत्काल टीका लगवाना अतिआवश्यक होता है।
बधियाकरण योजना दो साल से बंदबताया जा रहा है कि जिले में कुत्तों का बधियाकरण अभियान लगभग दो साल से अधिक समय से बंद पड़ी हुई है। इस कारण गली-मोहल्ले में अवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लोगों में अवारा कुत्तों को लेकर भय बना हुआ है।
जिले में अवारा कुत्तों के काटने का खौफ है। अस्पताल में आए दिन कुत्ते के काटने के मामले सामने आ रहे हैं। इसे लेकर लोग भयभीत है, लेकिन प्रशासन की ओर से कुत्तों के बधियाकरण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही रोजाना औसतन 10 से 12 मामले डॉग बाइट के सामने आ रहे हैं।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रैबिज के इतने टीके की खपतदिनांक रैबिज टीका खपत
27 दिसंबर 38 28 दिसंबर 32 29 दिसंबर 39 30 दिसंबर 40 31 दिसंबर 09
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रोजाना औसतन 10 से 12 डॉग बाइट के मरीज सामने आ रहे हैं। डॉग बाइट का शिकार होने पर घायल को रैबिज के पांच इंजेक्शन लगाए जाते हैं। पहला अर्थात जिरो डोज तत्काल में। इसके बाद तीसरे, सातवें, 14वें और 28वें दिन लगाए जाते हैं।
डॉ. गोपाल कंवर, मेडिसिन स्पेशलिस्ट, मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल