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आजादी के पहले कोलकाता से आई थी माता की प्रतिमा, उसी ढांचे में 77 साल से बन रही मूर्ति

Mother Durga Statue: कोरिया जिले के चिरमिरी (Chirimiri) स्थित छोटी बाजार बंगला स्कूल दुर्गोत्सव समिति की अनोखी पूजा, मूर्ति विसर्जन (Imerssion) के बाद वापस ले आते हैं ढांचा, ट्रेन के विशेष वैगन (Special vaigan) से लाया गया था लकड़ी का ढांचा

कोरीयाOct 14, 2021 / 06:45 pm

rampravesh vishwakarma

Mother Durga Idol in Chirimiri

Mother Durga Idol

बैकुंठपुर. चिरमिरी के छोटी बाजार बंगला स्कूल दुर्गोत्सव समिति पिछले ७७ साल से कोलकाता से माता की प्रतिमा ट्रेन के विशेष वैगन से मंगाकर उसी लकड़ी के ढांचे से मूर्ति बनवाकर आदि शक्ति की आराधना कर रही है। मूर्ति विसर्जन के बाद वापस उस ढांचे को लाया जाता है, यह परंपरा 1944 से चली आ रही है।

कोरिया जिले के चिरमिरी के छोटी बाजार बंगला स्कूल से विभूति भूषण लाहिड़ी ने वर्ष 1944 में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। उसके बाद पूरे सरगुजा संभाग में दुर्गोत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई।
आसपास माता की प्रतिमा नहीं मिलने के कारण कोलकाता से मालगाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को स्पेशल वैगन की बुकिंग कर मंगवाया गया था। करीब 77 साल से उसी प्रतिमा की लकड़ी के ढांचे में माता की प्रतिमा बनाने की परंपरा है।
वहीं करीब तीन-चार दशक वेस्ट बंगाल के कारीगर चिरमिरी में आकर मां दुर्गा की प्रतिमा आज भी उसी तर्ज में बनाते हैं। हालांकि आज भी ढाक (विशेष वाद्य यंत्र) वाले पखांजूर कोलकाता और पुजारी की टीम तारापीठ वेस्ट बंगाल आते हैं। चिरमिरी में दुर्गा पूजा का इतिहास 77 साल पुराना है।

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समिति का ये कहना
समिति का कहना है कि चिरमिरी के पंडालों में माता की पूजा में ढाक बजाने के लिए हर साल कोलकाता से कलाकार आते हैं। उसके बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा शुरू होने से पहले ही हर साल ढाक बजाने वाले पहुंच जाते हैं। दुर्गा पूजा की शुरुआत होने के साथ ढाक की आवाज में माहौल भक्ति हो जाता है।
Mother Durga story
IMAGE CREDIT: Navratra
आठ फीट ऊंची प्रतिमा विराजित
दुर्गा पूजा समिति के अनुसार कोरोना संक्रमण के कारण दुर्गा उत्सव में गाइडलाइन का पालन किया गया है। पूजा पण्डालों में 8 फीट ऊंची प्रतिमा बिठाई गई है। बंगाली दुर्गा पूजा पण्डाल में प्रसाद के रूप में फल वितरण को प्राथमिकता दी जा रही है। नगर निगम चिरमिरी में हर साल करीब 35 छोटे-बड़े पंडाल दुर्गा पूजा होती है। विभूति भूषण लाहिड़ी की पहल पर सरगुजा अंचल में पहला दुर्गा पूजा छोटी बाजार बंगला स्कूल में शुरु हुआ था।

1944 में हुई थी शुरुआत
बांग्ला स्कूल में दुर्गा पूजा 1944 शुरुआत हुई थी। चिरमिरी के संस्थापक विभूति भूषण लाहिड़ी ने दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। कोलकाता से मालगाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को ट्रेन की स्पेशल वैगन की बुकिंग कर मंगाया गया था। आज भी उसी फ्रेम(लकड़ी के ढांचे) में मां दुर्गा की प्रतिमा उसी तर्ज पर बनवाते हैं। खास बात यह है कि प्रतिमा बनाने के लिए कोलकाता से विशेष कारीगर आते हैं।
दिलीप ब्रह्मचारी, सदस्य बंगला दुर्गोत्सव समिति छोटी बाजार चिरमिरी

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