कोरिया जिले के चिरमिरी के छोटी बाजार बंगला स्कूल से विभूति भूषण लाहिड़ी ने वर्ष 1944 में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। उसके बाद पूरे सरगुजा संभाग में दुर्गोत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई।
समिति का ये कहना
समिति का कहना है कि चिरमिरी के पंडालों में माता की पूजा में ढाक बजाने के लिए हर साल कोलकाता से कलाकार आते हैं। उसके बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा शुरू होने से पहले ही हर साल ढाक बजाने वाले पहुंच जाते हैं। दुर्गा पूजा की शुरुआत होने के साथ ढाक की आवाज में माहौल भक्ति हो जाता है।
दुर्गा पूजा समिति के अनुसार कोरोना संक्रमण के कारण दुर्गा उत्सव में गाइडलाइन का पालन किया गया है। पूजा पण्डालों में 8 फीट ऊंची प्रतिमा बिठाई गई है। बंगाली दुर्गा पूजा पण्डाल में प्रसाद के रूप में फल वितरण को प्राथमिकता दी जा रही है। नगर निगम चिरमिरी में हर साल करीब 35 छोटे-बड़े पंडाल दुर्गा पूजा होती है। विभूति भूषण लाहिड़ी की पहल पर सरगुजा अंचल में पहला दुर्गा पूजा छोटी बाजार बंगला स्कूल में शुरु हुआ था।
1944 में हुई थी शुरुआत
बांग्ला स्कूल में दुर्गा पूजा 1944 शुरुआत हुई थी। चिरमिरी के संस्थापक विभूति भूषण लाहिड़ी ने दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। कोलकाता से मालगाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को ट्रेन की स्पेशल वैगन की बुकिंग कर मंगाया गया था। आज भी उसी फ्रेम(लकड़ी के ढांचे) में मां दुर्गा की प्रतिमा उसी तर्ज पर बनवाते हैं। खास बात यह है कि प्रतिमा बनाने के लिए कोलकाता से विशेष कारीगर आते हैं।
दिलीप ब्रह्मचारी, सदस्य बंगला दुर्गोत्सव समिति छोटी बाजार चिरमिरी