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हीरे की परख जौहरी करता है, जब जौहरी ही नहीं तो कैसे निकलेंगें खेलों में हीरे

बूंदी जिले के ‘बी-ग्रेड’ पीजी कॉलेज और गर्ल्स कॉलेज में विषयों के प्राध्यापकों को अस्थायी रूप से खेलों की जिम्मेदारी सौंपी हुई है। 

कोटाSep 06, 2017 / 07:19 pm

shailendra tiwari

Colleges have Temporarily Assigned Game Responsibility to the Faculties

बूंदी जिले के ‘बी-ग्रेड’ पीजी कॉलेज और गर्ल्स कॉलेज में विषयों के प्राध्यापकों को अस्थायी रूप से खेलों की जिम्मेदारी सौंपी हुई है।

बूंदी. ओलंपिक और राष्ट्रीय खेलों में मेडल की आस रखने वाली सरकार और आमजन को यह पता ही नहीं कि जहां से खेलों के हीरे निकलते हैं, वहां जौहरियों का अकाल है। कम से कम बूंदी जिले के कॉलेजों की बात करें तो यही हाल है। चाहे उनमें जिले का सबसे बड़ा ‘बी-ग्रेड’ पीजी कॉलेज हो या फिर गर्ल्स कॉलेज। कमोबेश यही हाल है। कॉलेजों में विषयों के प्राध्यापकों को अस्थायी रूप से इसकी जिम्मेदारी सौंपी हुई है। उन्हें खेलों के बारे में पूरी तरह नियमों तक का ज्ञान नहीं होने के बावजूद टीमें भेज रहे हैं।
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शुरू हो चुके कॉलेज स्तर के खेल
कॉलेज में क्रीड़ा अधिकारी नहीं है और अगस्त माह के शुरुआत से ही खेल कैलेंडर के अनुसार विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न खेल स्पद्र्धाएं शुरू हो गई। विश्वविद्यालय चयन होने के बाद खिलाड़ी अंतरविश्वविद्यालय जाते हैं।
कई खेल प्रतियोगिताएं कॉलेज और जिलास्तर की पूरी हो चुकी। इनमें गिनेचुने और वे ही खिलाड़ी भाग ले पाए जो अपने स्तर पर इनकी तैयारी में पिछले कई महीनों से जुटे हुए थे।
माध्यमिक शिक्षा में भी यही हाल
जिले के माध्यमिक शिक्षा के स्कूलों में भी यही हाल है। वर्षों से शारीरिक शिक्षकों का टोटा है, ऐसे राज्य स्तरीय खेलों में शहर के खिलाड़ी खेल स्पद्र्धा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, जबकि जिले से कई ऐसे खिलाड़ी भी है जो अपनी मेहनत के दम पर ही नेशनल स्तर तक पहचान कायम कर रहे हैं।विभाग में प्रथम ग्रेड के 3 में से 2 पद रिक्त है। द्वितीय ग्रेड के 69 पद स्वीकृत हैं जिनमें 66 कार्यरत है। सी प्रकार तृतीय श्रेणी के 179 स्वीकृत पदों पर 170 जने काम कर रहे हैं।
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इन कॉलेजों में यह स्थिति
पीजी कॉलेज – क्रीडा प्रभारी अधिकारी – राहुल सक्सेना (भूगोल व्याख्याता)
गर्ल्स कॉलेज – क्रीडा प्रभारी अधिकारी – श्रुति अग्रवाल (गृहविज्ञान व्याख्याता)

बिना मैदान कैसे निकलेंगे अच्छे खिलाड़ी
पीजी कॉलेज में व्याख्याता एन.के. जेतवाल का कहना है कि जब तक अच्छे खेल शिक्षक और खेल मैदान नहीं होंगे तब तक अच्छे खिलाड़ी की कल्पना नहीं की जा सकती। जिले के कॉलेजों में सारे क्रीड़ा अधिकारी के पद रिक्त हैं। सन् 1996 से ही कोई भर्ती नहीं हुई तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल मैदान भी नहीं है। खेलने वाला ही मैदान पर आता है जिन्हें यह सुविधा चाहिए होती है। सरकार को इस दिशा में अहम कदम उठाना चाहिए।
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इसलिए नहीं आते अतिथि
कॉलेजों में क्रीड़ा अधिकारी के लिए अतिथि फेकल्टी के लिए आवेदन तो मंगाए लेकिन कोई आना नहीं चाहता। इसके पीछे जो कारण सामने आया वह यह दिखा कि उन्हें केवल पांच-छह माह तक ही रखा जाता है। इसके बदले उन्हें मात्र 10 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है। यदि वही आवेदक निजी कॉलेज या स्कूल में कार्य करता है तो उसे पूरे वर्ष का अच्छा वेतन मिल जाता है।

बूंदी अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) ओमप्रकाश गोस्वामी का कहना है कि खेल स्पद्र्धाओं में शारीरिक शिक्षकों की कमी है। वर्षों से ही पद रिक्त है। राज्य स्तरीय खेल के लिए कोच की मदद ली जाती है।
बूंदी प्राचार्य कन्या महाविद्यालय पी.के. सालोदिया का कहना है कि शारीरिक शिक्षकों के पद रिक्त होने की वजह से कॉलेज में विषयों के प्राध्यापकों को ही अस्थायी रूप से खेलों का काम देखना पड़ रहा है। इससे शिक्षण कार्य प्रभावित होता है।
बूंदी पीजी कॉलेज क्रीड़ा अधिकारी राहुल सक्सेना का कहना है कि न सुविधा है और न ही मैदान जो खिलाड़ी भेजे जाते हैं, उनसे किसी चमत्कार की उम्मीद करना बेमानी होगा। सरकार को नियमित भर्ती निकालनी चाहिए तभी अच्छे खिलाड़ी की उम्मीद की जा सकती है।
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