हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस, क्यों न रद्द कर दी जाए कोटा कुलपति की नियुक्ति?
प्रो. मधुसूदन शर्मा के कार्यकाल में बंटी थी नौकरियों की रेवड़ीपूर्व कुलपति प्रो. मधुसूदन शर्मा के कार्यकाल में सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर ‘बहू-बेटों’ को नौकरियों की रेवड़ी बांटी गई। नियुक्तियों में भी यूजीसी की ओर से तय किए गए न्यूनतम योग्यता मानकों को नजरंदाज किया गया। भौतिक विज्ञान एवं कंप्यूटर साइंस विषयों में सिर्फ एक-एक आवेदन होने के बावजूद चयन प्रक्रिया पूरी की गई। जबकि एक पद के लिए कम से कम तीन अभ्यार्थियों की मौजूदगी अनिवार्य होती है। जांच में सामने आया कि परीक्षा नियंत्रक के पद पर चयनित अभ्यार्थी को परीक्षा संबंधी अनुभव था ही नहीं। जबकि इस पद के लिए एकेडमिक ऑफीसर्स का वर्क सुपरवीजन, नियंत्रण एवं प्लानिंग आदि का अनुभव होना जरूरी था। वहीं प्रोफेसर पद पर चयनित किए गए शिक्षकों का एपीआई इस पद के योग्य ही नहीं था।
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कौन किसका रिश्तेदारविपुल शर्मा- तत्कालीन कुलपति डॉ. मधुसूदन शर्मा के पुत्र हैं
शिखा दाधीच- बोम सदस्य डॉ. एलके दाधीच की पुत्रवधु
रोहित नंदवाना- कांग्रेस नेता शिवकांत नंदवाना के रिश्तेदार
डॉ. चक्रपाणि गौतम- युवक कांग्रेस के पूर्व पदाधिकारी
संजीव दुबे – शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी के करीबी
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ये भी मिली थी गड़बड़ीचयन समिति ने तत्कालीन कुलपति के बेटे विपुल शर्मा के अनुभव प्रमाण पत्र की जांच तक नहीं की। इस प्रमाण पत्र में उनकी ग्रेड और वेतन तक का उल्लेख नहीं किया गया था। इतना ही नहीं उनका चयन उपकुलसचिव शोध के पद पर किया गया, जबकि इस पदनाम पर नियुक्ति के लिए कोई विज्ञापन ही नहीं निकाला था। ऐसा ही जौली भंडारी के चयन में भी किया गया। बोम ने उनका चयन उपकुलसचिव प्रशासन के पद पर किया। इस पदनाम को बाद में बदला भी गया। वहीं सहायक कुलसचिव के पद पर शिखा दाधीच के चयन को उनके ससुर डॉ. एलके दाधीच की सदस्यता वाली बोम ने मंजूरी दी। असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर स्नातकोत्तर तक की परीक्षाओं में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंक अनिवार्य है, लेकिन लोक प्रशासन विषय के लिए चयनित विक्रांत शर्मा के सैकण्डरी में 54.36, हायर सैकण्डरी में 48.35 और स्नातक में 53.31 फीसदी अंक ही थे। सिर्फ स्नातकोत्तर परीक्षा में उन्हें 57.77 फीसदी अंक होने के बावजूद उनका चयन किया गया।
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विधायक ने उठाया था विधानसभा में मामलासांगोद विधायक हीरालाल नागर ने इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सरकार ने आरोपों की जांच के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी। मार्च 2015 में इस समिति ने जांच शुरू की और दो साल तक गहन परीक्षण करने के बाद इस साल जनवरी में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट में आए तथ्यों की जांच के लिए सरकार ने कोटा विश्वविद्यालय से बिंदुबार स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन विवि के अफसरों ने गोलमोल जवाब देकर मामला टालने की कोशिश की। जिनका परीक्षण करने के बाद सरकार ने भी मान लिया कि कोटा विश्वविद्यालय ने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अफसरों के ‘बहू-बेटों’ और राजनेताओं के रिश्तेदारों को नौकरियां बांटी। संयुक्त सचिव उच्च शिक्षा डॉ. नाथू लाल सुमन ने 21 मार्च 2017 को विवि के कुलसचिव को आदेश जारी किया है कि इस मामले में दोषी अफसरों और नौकरियां पाने वालों के खिलाफ प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई सुनिश्चित करें।