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पूरा घर ढहा, चोरी हुई, मां ने नहीं हारी हिम्मत, 7 लाख बच्चों में टॉप करके शहीद पिता की राह पर चला बेटा, आज कर रहा देशसेवा

Mother’s Day 2024: वक्त हमेशा चलता है, कुछ अच्छे पल तो कुछ कड़वी यादें दे जाता है। जो हार मान लेते हैं, वहीं रह जाते हैं और जो ठान लेते हैं, वे दुनिया के लिए मिसाल बन जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है शहीद सुभाष शर्मा की पत्नी वीरांगना बबीता शर्मा की।

कोटाMay 12, 2024 / 09:58 am

Akshita Deora

Mother’s Day Special Story: सुभाष का साथ छूटने के बाद भी बबीता नहीं हारी, बल्कि भीगी आंखों से बेटे क्षितिज को शिखर तक पहुंचाने का सपना सजा लिया। लम्बे संघर्ष के बाद मां बबीता ने बेटे क्षितिज को पति की तरह देश सेवा के लिए तैयार कर दिया। अब क्षितिज फौज में कैप्टन है। सुभाष शर्मा आतंकियों के खिलाफ जंग लड़ते हुए 16 अप्रेल 1996 को बम धमाके में शहीद हो गए थे। तब बेटा क्षितिज मात्र 9 माह का था। बबीता बताती हैं कि वह दौर संघर्ष का था, लेकिन आज एक मां के रूप में बेटे को सफल देखती हूं तो लगता है कि उनका ध्येय पूरा हो गया।

शहीद की पत्नी हूं, लड सकती हूं

श्रीनाथपुरम निवासी बबीता बताती हैं कि मैंने पति को तिरंगे में लिपटे देखा तो कुछ पल के लिए पैरों तले जमीन खिसक गई। परिजनों ने ढांढ़स बंधाया तो फिर विचार आया कि शहीद की पत्नी किसी भी हाल में कमजोर नहीं हो सकती। मैं विधवा नहीं, वीरांगना हूं। बस बेटे क्षितिज के भविष्य को संवारने की ठान ली।मन में एक ही बात थी कि मुझे खुद की ओर नहीं बेटे की तरफ देखना है। इसके बाद बेटे की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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बिखर गया था आशियाना

11वीं कक्षा में पढ़ते हुए बेटे ने एनडीए की परीक्षा में सफल होने का संकल्प लिया। वर्ष 2013 में नेशनल डिफेंस अकादमी की परीक्षा दी। उसी समय हमारे ऊपर नई मुसीबत आ गई। खाली पडे प्लॉट्स में पानी भर जाने से, घर कमजोर होकर ढह गया। घर में जो सामान था, चोरी हो गया। ऐसी परिस्थिति में बेटे का रिजल्ट आया तो उसने 7 लाख बच्चों में से प्रदेश में पहला व देश में 13वां स्थान प्राप्त किया। मैं सारे दु:ख भूल गई। वर्ष 2019 में गोल्ड मेडल के साथ क्षितिज लेफ्टीनेंट बना तथा मिस्टर आईएमए ( Mr IMA) भी बना। अब कैप्टन है। जल्द ही मेजर बनने वाला है। अभी आर्मी चीफ के एडीसी ( Aide De Camp ) के रूप में महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहा है।

शांति स्थापना के लिए श्रीनगर गए थे सुभाष

झुंझुनूं जिले के चूड़ी अजीतगढ़ जिले के सुभाष शर्मा 1984 में इंडियन एयर फोर्स से शामिल हुए थे। वर्ष 1989 को असिस्टेंट कमांडेंट बन गए। 1994 में आतंक की आग में झुलस रहे कश्मीर में उन्हें शांति स्थापना के लिए श्रीनगर भेजा गया। 1996 में उनकी डिप्टी कमांडेंट पद पर पदोन्नति हुई। उसी साल 16 अप्रेल 1996 को आतंककारियों से मुठभेड में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत वीरता व अदम्य साहस के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक शौर्य से भी सम्मानित किया गया।

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