समझाया था जीवन का सार
नैन ने बताया कि इसके एक दिन बाद रविवार को भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर मुख्य कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि जीवन के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं। निर्वाह यानि जन्म, निर्माण यानि जीवन में कमाया गया पुण और निर्वाण मृत्युलोक गमन। यह जीवन का सार है। शाम करीब साढ़े पाचं बजे वे साधना के लिए कमरे में गए थे, दस मिनट तक उनके बाहर नहीं आने के बाद लोग उनके कक्ष के नजदीक पहुंचे तथा उन्हें आवाज दी, लेकिन कोई प्रतयुत्तर नहीं मिला। इसके बाद उन्हें देखा, बाद में चिकित्सकों को बुलाया तो उन्होंने शरीर के सभी अंगों के कार्य नहीं करने की जानकारी दी। इसके बाद आचार्यश्री के देवलोक गमन की खबर पूरे देश में फैल गर्ई। सोमवार सुबह आचार्यश्री की चक डोला यात्रा जैन नसियां मंदिर से रवाना हुई। इसमें आचार्य श्री को साधाना (बैठी हुई) की मुद्रा में सिंहासन पर विराजत किया हुआ था। डोला यात्रा अम्बेडकर सर्किल व दीनदयाल पार्क होते हुए वापस नसिया मंदिर पहुंची। यहां 21 सौ सूखे नारियल व चंदन की लकड़ी से उनका अन्तिम संस्कार किया गया।