अनुयायियों ने किया था आग्रह तो बोले थे आचार्य... अब हमारा बंधन समाप्त हो गया
आचार्य ज्ञान सागर महाराज की देह पंच तत्व में विलीन

बारां. शाहाबाद रोड स्थित नसियां मंदिर पर रविवार देर शाम जैन संत आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज का देवलोक गमन हो गया। आचार्य पिछले चार माह से यहां चतुर्मास कर रहे थे। उनका चतुर्मास 14 नवम्बर शनिवार को ही पूर्ण हुआ था। जबकि रविवार को भगवान महावीर स्वामी की निर्वाण दिवस था। सोमवार सुबह आचार्यश्री की शहर में चक डोल यात्रा निकाली गई। इसमें प्रदेश के खान एवं गोपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया, विधायक पानाचंद मेघवाल समेत देशभर से पहुंचे हजारों श्रद्धालु शामिल रहे। बाद में उनका जैन मतानुसार अन्तिम संस्कार किया गया।
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खंडेलवाल दिगम्बर जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष यशभानु जैन ने बताया कि ज्ञानसागरजी महाराज का चतुर्मास शनिवार को पूर्ण हुआ था। इस अवसर पर प्रात: आठ बजे विधि-विधान से निष्ठापन समारोह का आयोजन किया गया था। शहर के जैन समाज के लोगों ने महाराजश्री से कोरोना संक्रमण काल के चलते चतुर्मास की अवधि बढ़ाने का विनम्र अनुरोध किया था। अनुयायियों के अनुरोध पर महाराजश्री ने कहा था कि अब हमारा यहां से बंधन समाप्त हो गया, कपूर की भांति कब उड़ जाए, कौन जाने। इस दौरान उन्होंने धर्म को लेकर सारगर्भित ज्ञान का उपदेश दिया था। पूरे दिन वे निराहार रहे थे।
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समझाया था जीवन का सार
नैन ने बताया कि इसके एक दिन बाद रविवार को भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर मुख्य कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि जीवन के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं। निर्वाह यानि जन्म, निर्माण यानि जीवन में कमाया गया पुण और निर्वाण मृत्युलोक गमन। यह जीवन का सार है। शाम करीब साढ़े पाचं बजे वे साधना के लिए कमरे में गए थे, दस मिनट तक उनके बाहर नहीं आने के बाद लोग उनके कक्ष के नजदीक पहुंचे तथा उन्हें आवाज दी, लेकिन कोई प्रतयुत्तर नहीं मिला। इसके बाद उन्हें देखा, बाद में चिकित्सकों को बुलाया तो उन्होंने शरीर के सभी अंगों के कार्य नहीं करने की जानकारी दी। इसके बाद आचार्यश्री के देवलोक गमन की खबर पूरे देश में फैल गर्ई। सोमवार सुबह आचार्यश्री की चक डोला यात्रा जैन नसियां मंदिर से रवाना हुई। इसमें आचार्य श्री को साधाना (बैठी हुई) की मुद्रा में सिंहासन पर विराजत किया हुआ था। डोला यात्रा अम्बेडकर सर्किल व दीनदयाल पार्क होते हुए वापस नसिया मंदिर पहुंची। यहां 21 सौ सूखे नारियल व चंदन की लकड़ी से उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
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