बाहुबली बृजभूषण सिंह; जिनकी हनक के सामने झुकी BJP,कैसरगंज लोकसभा सीट बनी गले की हड्डी
Brij Bhushan Singh: लोकसभा चुनाव 2024 में पूरे देश की नजर यूपी की कैसरगंज लोकसभा सीट पर है। इस सीट पर टिकट को लेकर BJP असमंजस में है। इसका कारण बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह का राजनीतिक रसूख बताया जा रहा है। आइए जानते हैं यहां पर राजनीतिक समीकरण क्या कहते हैं?
Brij Bhushan Singh: कैसरगंज से सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों के बाद बीजेपी के लिए हाल सांप-छछूंदर जैसा हो गया है। अभी तक कैसरगंज लोकसभा सीट के लिए किसी भी राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है – ये बात अलग है कि बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह अपने से ही चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं।
यूपी की कैसरगंज लोकसभा सीट पर BJP में टिकट को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह की हनक और राजनीतिक रसूख के सामने कैसरगंज लोकसभा सीट बीजेपी के गले की हड्डी बन गई है। दरअसल, बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह का पिछले 34 सालों से इस सीट पर कब्जा है। हालांकि, इस बीच ऊपर कई गंभीर आरोप लगे, लेकिन सभी आरोपों से वह बाइज्जत बरी हो गए। लेकिन हाल ही में कुश्ती महिला खिलाड़ियों ने सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी। यह मामला सुर्खियों में आया तो भाजपा में घमासान मच गया।
सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों के बाद कैसरगंज सीट पर बीजेपी के लिए हाल सांप-छछूंदर जैसा हो गया है। अभी तक कैसरगंज लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। ये बात अलग है कि बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह अपने से ही चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं।
29 साल से भाजपा के साथ हैं Brij Bhushan Singh
उतार-चढ़ाव और आफत से निपटने की कला ही सांसद बृजभूषण शरण सिंह को देवीपाटन मंडल का सियासी सूरमा बनाती है। 34 वर्ष की राजनीति में 29 साल भाजपा के साथ रहने वाले बृजभूषण शरण सिंह का इस लोकसभा चुनाव में टिकट कटने या मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं। कोई उनको विकास का दुश्मन कहता है तो कोई उन्हें युवाओं का रहनुमा बताता है। बृजभूषण शरण सिंह की ताकत का दबदबा क्यों हैं?
1991 में राम मंदिर आंदोलन के अगुवाकारों में बृजभूषण शरण सिंह का राजनीति में उभार हुआ। इसके पहले उन्होंने साकेत महाविद्यालय से पढ़ाई की और छात्र राजनीति से निकल कर सीधे राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए। राम लहर में उन्होंने 1991 में बीजेपी की टिकट पर गोंडा लोकसभा सीट से जीत हासिल की। इसी कार्यकाल के बीच गोंडा की कटरा विधानसभा क्षेत्र में एक गोकशी की घटना हुई और बवाल होने पर कटरा बाजार नगर पंचायत क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया।
एसपी के साथ भिड़ंत
कटरा बाजार थाने में कई युवाओं और किशोरों को पुलिस ने पकड़ कर थाने में कैद कर दिया और दंगा भड़काने के आरोप में उन्हें परेशान किया जा रहा था। इसकी जानकारी होते ही सांसद बृजभूषण शरण सिंह अपने लाव लश्कर के साथ कटरा थाने पहुंच गए। पुलिस और प्रशासन ने कहा कि क्षेत्र में कर्फ्यू लगा है इसलिए जाने पर प्रतिबंध है। लेकिन, बृजभूषण सिंह ने उसकी भी परवाह नहीं की। मौके पर मौजूद तत्कालीन एसपी से उनकी बहस हुई और मामला बिगड़ता देख तत्कालीन एसडीएम को बीच-बचाव कराना पड़ा। बृजभूषण सिंह की जिद के आगे पुलिस की एक न चली और सभी युवाओं को छोड़ना पड़ा। वहीं से बृजभूषण शरण सिंह युवाओं के मसीहा बन गए।
एक लाख से अधिक युवा हैं ताकत
कैसरगंज संसदीय सीट से सांसद भले ही टिकट के जाल में फंसी है, लेकिन उनकी ताकत एक लाख से अधिक युवा हैं। बृजभूषण शरण सिंह ने नंदिनीनगर कालेज की स्थापना की। इसके बाद गोंडा की कमजोर शिक्षा को आधार बनाकर देवी पाटन मंडल में चार दर्जन से अधिक कॉलेज और स्कूलों की स्थापना की। इसमें पढ़ने वाले एक लाख से अधिक युवा औरर उनके परिजन सांसद बृजभूषण शरण सिंह की ताकत हैं। यही कारण है कि विरोध के बावजूद उनके हौसले को डिगाया नहीं जा सका।
गंभीर आरोपों को पार कर बेदाग निकले
सांसद के पहले कार्यकाल में बृजभूषण शरण सिंह पर आंतकी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगा। इसके बाद उन्हें टाडा में जेल जाना पड़ा। भाजपा ने 1996 में इसी आरोप के चलते टिकट नहीं दिया। उनके स्थान पर उनकी पत्नी केतकी सिंह को लड़ाया और वह जीत गईं। कुछ समय बाद बृजभूषण शरण सिंह टाडा के आरोप से बाइज्जत बरी हो गए। 1999 में फिर से भाजपा ने टिकट दिया और चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए। इसके बाद उनके जीतने का सिलसिला जारी रहा। 2004 में उनकी जगह घनश्याम शुक्ला को गोंडा से टिकट दिया गया। इसमें घनश्याम शुक्ला की मौत मतदान के दिन हो गई। इसका आरोप भी बृजभूषण पर ही लगा। दो बार सीबीआई जांच हुई, लेकिन वह बरी हो गए।
2009 में सपा से लड़े थे चुनाव
2009 में सीटों का परिदृश्य परिसीमन की वजह से बदल गया और भाजपा से थोड़ी अनबन होने पर बृजभूषण शरण सिंह ने सपा का दामन थाम लिया। सपा के टिकट पर कैसरगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए।गोंडा सीट पर कमजोर प्रत्याशी होने के कारण 2009 में भाजपा तीसरे पायदान पर पहुंच गई। यहां से कांग्रेस के नेता बेनी प्रसाद वर्मा चुनाव जीते और बसपा से कीर्तिवर्धन सिंह दूसरे स्थान पर रहे। लेकिन 2014 में वह फिर भाजपा में वापस लौटे और 2014 तथा 2019 में कैसरगंज सीट पर जीत हासिल की।
2024 के चुनाव के पहले उन पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न सहित कई आरोप लगे, जिसमें अभी तक जांच एजेंसियों ने बृजभूषण शरण सिंह को आरोपी साबित नहीं किया है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में यौन उत्पीड़न का मामला और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से जुबानी अदावत उनके टिकट में रोड़ा हैं। फिलहाल पार्टी हाईकमान क्या तय करती है सबको इसी का इंतजार है। वहीं, सूत्रों ने दावा किया है कि बृजभूषण सिंह के बेटे और कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष करन भूषण सिंह को बीजेपी कैसरगंज सीट से उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
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