आलोक पाण्डेय
लखनऊ. मम्मियों को दूध पिलाने से परहेज है। डर है कि अपनी औलाद को स्तनपान कराएंगे तो फिगर बिगड़ जाएगा। इस खौफ ने नौनिहालों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है। औसतन सिर्फ उत्तर प्रदेश में सालाना 33 लाख नवजातों को जिंदगी के लिए मौत से लडऩा पड़ता है। कारण सिर्फ जन्म के पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिलना अथवा पैदाइश के छह महीने तक मम्मी का छाती से ज्यादा दूरी रहना। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट चौंकाने वाला खुलासा करती है। यूपी में पूर्वांचल और बुंदेलखंड के बच्चों को अपनी मां के आंचल का सहारा ज्यादा मिलता है, जबकि पश्चिम यूपी और रुहेलखंड में नवजातों को मम्मी के दूध के लिए तरसना-तड़पना पड़ता है। ललितपुर, बांदा, इटावा के साथ-साथ बस्ती, गोरखपुर, बलरामपुर की माताएं अपने बच्चों को जन्म से लेकर छह महीने तक खूब स्तनपान कराती हैं, जबकि मुजफ्फरनगर, रामपुर, मेरठ और अमरोहा में बामुश्किल 20 फीसदी मम्मियां भी नहीं हैं, जोकि स्तनपान कराने से नहीं हिचकती हैं।
बांदा और गोंडा के नवजातों को छाती से लगाकर रखती हैं मां
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक नवजात के जन्म के पहले घंटे में अपना दूध पिलाने के मामले में बांदा की महिलाएं सबसे आगे हैं। बुंदेलखंड के बांदा में 76 फीसदी महिलाएं जन्म देने के बाद अपने बच्चे को छाती से लगाकर रखती हैं, जबकि इस मामले में श्रावस्ती की महिलाएं सबसे पीछे दिखती हैं। यहां सिर्फ 14.8 फीसदी महिलाओं ने कबूल किया कि उन्होंने पैदाइश के पहले घंटे में अपनी औलाद को स्तनपान कराया था। सर्वे रिपोर्ट बताती है कि जन्म के पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिलने के कारण 33 लाख बच्चों की जिंदगी मुश्किल में फंस गई थी।
छह महीने तक मां के आंचल में रहते हैं पूर्वांचल के बच्चे
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि यूपी के पूर्वांचल में महिलाओं को स्तनपान कराने से परहेज नहीं है। औलाद के जन्म से छह महीने तक दूध पिलाने के मामले में पूर्वांचल बेहतर साबित हुआ। गोरखपुर में 70.6 फीसदी महिलाओं ने अपने कलेजे के टुकड़ों को छह महीने तक छाती से चिपकाकर रखा, इसी प्रकार महाराजगंज और बलरामपुर में 68.8 प्रतिशत, बस्ती में 68.4 प्रतिशत, गोंडा में 67.9 फीसदी, फैजाबाद में 66.4 प्रतिशत, जौनपुर में 66.2 प्रतिशत महिलाओं ने अपने बच्चों को छह महीने तक स्तनपान कराने से परहेज नहीं किया।
छह महीने के बाद भी स्तनपान कराती हैं गोंडा की मम्मियां
सर्वे में सामने आया कि गोंडा में नवजात को जन्म के छह महीने के बाद भी मां का दूध मिलता रहता है। यहां 56.3 फीसदी प्रसूताओं ने अपने बच्चों को तीन वर्ष की अवस्था तक स्तनपान कराया, जबकि इस मामले में आगरा फिसड्डी साबित हुआ। आगरा में सिर्फ 9 फीसदी महिलाओं ने तीन साल तक अपने बच्चे को दूध पिलाया। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं की इसी सोच के कारण पूर्वांचल में कुपोषण के कारण नवजातों की मौत का ग्राफ काफी नीचे है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नवजातों की मौत के आंकड़े डरावने हैं।
मुजफ्फरनगर में फिगर की चिंता ज्यादा, मेरठ भी पीछे नहीं
सर्वे रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में सिर्फ 13.3 फीसदी महिलाएं अपने बच्चों को छह महीने तक स्तनपान कराती हैं। इसी प्रकार रामपुर में 15 फीसदी, मेरठ में 15.2 फीसदी, अमरोहा में 19.1 फीसदी महिलाओं ने छह महीने तक औलाद को स्तनपान कराने की बात स्वीकारी। लखनऊ विवि के समाजशास्त्र विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुंदर दिखने की चाह और आकर्षक फिगर की चाहत में महिलाओं के अंदर स्तनपान कराने से परहेज की प्रवृत्ति बढ़ी है।
मां के दूध में होता है अमृत, स्तनपान से फिगर नहीं बिगड़ता
चिकित्सा विज्ञान साबित कर चुका है कि मां के दूध में नवजात के लिए अमृत होता है। बच्चे के जन्म के पहले घंटे में मां के दूध में ऐसे जीनवरक्षक एंटीबॉडी पाए जाते हैं, जोकि तमाम बीमारियों को दूध रखने में कामयाब होते हैं। इसके अतिरिक्त पहले घंटे का दूध बच्चे के विकास में सहायक होता है। चिकित्सकों के मुताबिक, पहले घंटे में मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है। इसके अतिरिक्त नवजात को स्तनपान कराने से प्रसव बाद होने वाली तमाम बीमारियों से प्रसूता को निजात मिलने की संभावना ज्यादा रहती है। गॉयनी डॉ. नीरा दीक्षित कहती हैं कि स्तनपान कराने से किसी महिला का फिगर नहीं खराब होता है। यह सिर्फ बकवास है,जबकि हकीकत यह है कि प्रसव के बाद पौष्टिक भोजन के मुकाबले शारीरिक श्रम कम होने के कारण महिलाओं का शरीर थुलथुल हो जाता है।