scriptमुझे डाकू मत कहो, मैं बागी हूं….पुलिस भी जिसकी मुखवीर थी, उसके एनकाउंटर की इनसाइड स्टोरी | Don't call me a dacoit, I am a rebel...the inside story of his encount | Patrika News
लखनऊ

मुझे डाकू मत कहो, मैं बागी हूं….पुलिस भी जिसकी मुखवीर थी, उसके एनकाउंटर की इनसाइड स्टोरी

ददुआ अपने गैंग के साथ हमेशा हीरण और कुत्ता रखता था। इन दोनों की विशेषता थी कि मनुष्य की गंध या कोई भी अस्वाभावित हलचल वो भांप लेते थे और अपनी प्रतिक्रिया देते थे। जिससे ददुआ गैंग फौरन सर्तक हो जाता था। चंबल का आखिरी बेहद खतरनाक और क्रूर डाकू जिसने पहली वारदात ही नौ लोगों को मौत की नींद सुलाने के बाद किया और शिवकुमार पटेल से बन गया ददुआ। जानते हैं पूरी कहानी मार्कण्डेय पांडे से….।

लखनऊNov 29, 2023 / 12:50 pm

Markandey Pandey

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उसने गैंग बनाने के साथ ही अपना खुद का तर्पण भी कर लिया था।

Lucknow News: साईकिल के आगे डंडी मेंं गमछा लपेट कर सीट बनाया और किसान पिता ने अपने बेटे को सरकारी स्कूल पहुंचा दिया। स्कूल से लौटते ही बच्चे को पता चला उसके पिता नहीं रहे। उनका कत्ल गांव के ही जमींदार जगन्नाथ ने कर दिया है। कत्ल भी अत्यंत बेरहमी से किया गया जब वह अपने बच्चे को स्कूल पहुंचाकर वापस आ रहे थे तो उनको नंगा करके पूरे गांव में घुमाया गया फिर उनका सिर धड़ से अलग कर लंबे बांस के सहारे गांव में लगा दिया गया और डुगडुपी पीटा दी गई मुखिया का आदेश न मानने वालों का यही अंजाम होगा।
शिवकुमार पटेल यहीं से बागी बन गया और हथियार उठा लिया। एक दो नहीं कुल आठ और नौंवे जमींदार जगन्नाथ का कत्ल दिया। कुल नौ लोगों की एकमुश्त हत्या के बाद शिवकुमार पटेल चंबल का रास्ता पकड़ लिया। यही वजह है कि वह हमेशा कहता रहा मै डकैत नहीं हूं, बागी हूं। बगावत किया हूं, मुझे न्याय नहीं मिला तो बागी बन गया। शिवकुमार पटेल से ददुआ बन गया।
गैंग बनाया, और खुद का किया तर्पण
नौ लोगों की एक साथ हत्या कर चंबल में बागी बनने वाले ददुआ को अब लगने लगा कि सामान्य जिंदगी उसके लिए अब संभव नहीं है। हांलाकि पिता के हत्यारों का बदला लेकर वह अतीव शांति महसूस कर रहा था। उसे लगने लगा कि अब गैंग बनाना होगा और अपने मददगारों को भर्ती करना होगा।
ददुआ ने तेजी से भरोसे मंद लोगों को अपने गैंग में भर्ती किया उसे पहले ही मालूम था कि उसने अपराध किया है और पहले ही अपराध के बाद उसने अपनी मौत की सुपारी ले ली है। ऐसे में उसने गैंग बनाने के साथ ही अपना खुद का तर्पण भी कर लिया था।
गैंग का खर्च तेंदू पत्ते से
ददुआ जंगल जीवन का अभ्यस्त था उसे जंगलों से होने वाली आय की पूरी जानकारी थी। उसे पता चला कि तेदूं पत्ते के व्यवसाय करने वाले करोड़ो लाखों कमा रहे हैं, जबकि तेंदू पेड़ जंगल की सम्पत्ति है। उल्लेखनीय है कि तेदूं के पत्ते से सिगरेट और कुछ दवाएं बनाई जाती है। ददुआ ने अपने और अपने डकैतों के जीवन यापन के लिए ठेकदारों को धमकाना शुुरु किया और वसूली करने लगा।
ठेकेदारों के मजदूरों को पैसा दिलवाता और गरीबों की मदद करना भी शुुरु कर दिया। ददुआ के टाईम में मुखवीरी करने का मतलब उसकी मौत है। 32 साल में ददुआ की फोटो तक पुलिस के पास नहीं थी। पुलिस के मुखवीरों से अधिक ददुआ के मुखवीर होते थे, यहां तक की पुलिस के अंदर भी मुखवीर थे।
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IMAGE CREDIT: पिता के हत्यारों का बदला लेकर वह अतीव शांति महसूस कर रहा था।
हीरण और कुत्ता हमेशा रखता साथ में
ददुआ अपने गैंग के साथ हमेशा हीरण और कुत्ता रखता था। इन दोनों की विशेषता थी कि मनुष्य की गंध या कोई भी अस्वाभावित हलचल वों भांप लेते थे और अपनी प्रतिक्रिया देते थे। जिससे ददुआ गैंग फौरन सर्तक हो जाता था। जंगल में अनेक बार पुलिस ने कांबिंग किया, सर्च आपरेशन चले, छापेमारी, एसटीएफ और विशेष दल बनाया गया लेकिन ददुआ या उसका गैंग हाथ नहीं आया।
चार सौ से अधिक मामले, दो सौ से अधिक कत्ल किया
ददुआ ज्यादातर मामलों में थोक में हत्याएं करता था। पहली वारदात भी उसने नौ लोगों की हत्या से शुरु किया था। तकरीबन तीन दशक से अधिक समय तक चंबल में अपना राज चलाने के बाद उसे लगने लगा कि अब राजनीति में भी हाथ आजमाना चाहिए। चंबल का इलाका उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों को मिलाकर है जिसमें तकरीबन 15 विधान सभा सीटें हैं। इन सभी सीटों पर ददुआ की मर्जी चलने लगी उसके आर्शिवाद के बिना कोई चुनाव नहीं जीत सकता था। ददुआ ने भी सपा और बसपा का दामन समय के साथ थामा लेकिन कामयाब नहीं हो सका। उसका नारा हुआ करता था कि मोहर लगेगी हाथी पर वर्ना गोली पड़ेगी छाती पर।
उसने बसपा के बैनर से अपने कई रिश्तेदारों को बसपा से चुनावी मैदान में उतारा, फिर मायावती के कमजोर पड़ते ही सपा का दामन थाम लिया। 2007 में मायावती की सरकार बनी। इसी दौरान ददुआ ने जिन लोगों ने वोट नहीं दिया था, उनका कत्ल करना शुरु कर दिया। इसके बाद दस लाख के इनामी ददुआ के पीछे मायावती की पुलिस पीछे पड़ गई। बताया जाता है कि वोट ना देने वाले एक मतदाता की उसने आंख निकाल लिया था।
एनकाउंटर से बचा लो हनुमान जी, आपका मंदिर बनाउंगा
चंबल के राजा और दो राज्यों के आतंक ददु़आ को जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए सिर्फ उत्तरप्रदेश सरकार ने सौ करोड़ की रकम खर्च किया था। इसके लिए अनेक पुलिस टीम, सैकड़ों आपरेशन टीम, एसटीएफ, इंटेलिजेंस बने और चंबल के बीहड़ों, जंगलों की खाक महीनों तक छानते रहे लेेकिन ददुआ तो क्या उसका कोई निशान तक नहीं खोज पाए।
बताया जाता है कि एक बार पुलिस की टीम थोड़ी बहुत कामयाब हुई और ददुआ जंगल में चारों तरफ से घिर गया। उसे लगने लगा था कि मौत करीब है तो उसने हनुमान जी का ध्यान किया और प्रार्थना किया कि ‘आज मै एकाउंटर से बच गया तो आपका मंदिर बनाउंगा।’ संयोग कुछ ऐसा हुआ कि पुलिस की घेराबंदी नाकाम साबित हुई और ददुआ बच गया। वह पुलिस की घेरेबंदी से सुरक्षित निकल गया। पुलिस थकी हारी, ठगी हुई वापस आ गई।
मंदिर का उदघाटन किया, पुलिस हाथ मलती रही
मुनादी पीट गई, सबको जानकारी मिली कि नरसिंहपुर में मंदिर का उदघाटन ददुआ करने जा रहा है। मंदिर को कम बल्कि ददु़आ को देखने और मिलने हजारों की तादात में लोग दूर-दूर से बैलगाड़ी, पैदल, साईकिल से पहुंचने लगे। दूसरी तरफ पुलिस ने कदम-कदम पर जाल बिछाया, किसी कीमत पर ददुआ जिंदा वापस नहीं जाना चाहिए।
पुलिस ने वर्दी के साथ सादी वर्दी में सैकड़ों जवानों को तैनात किया किसी भी हाल में दुर्दांत अपराधी ददुआ बचकर नहीं जाना चाहिए। मंदिर के उदघाटन में निश्चित समय पर वह आया और उदघाटन ही नहीं, बाकायदा पूजा, आरती करके मंदिर का उदघाटन करके वापस चला गया। पुलिस हाथ मलती रह गई। मंदिर के उदघाटन के बाद लोग चर्चा करते रहे पुलिस की वर्दी पहन कर आया था, कोई कहता नहीं भाई पुजारी बनकर आया था। हांलाकि ददुआ को पहचानता कोई नहीं था।
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IMAGE CREDIT: उसने हनुमान जी का ध्यान किया और प्रार्थना किया कि ‘आज मै एकाउंटर से बच गया तो आपका मंदिर बनाउंगा।
21 जुलाई 2007 को छोटा पटेल पुलिस के हत्थे चढ़ा
पुलिस ने ऐसे लोगों को पकड़ा जो ददुआ के डर से उसका सर्पोट करते थे। उनके बताए हुए जानकारियों के आधार पर पुलिस आगे बढऩे लगी और एक मुठभेड़ में ददुआ का खास छोटा पटेल मारा गया। तीन महीने तक ददुआ की तलाश में पुलिस जंगलों में भटकती रही।
ददुआ के तगड़े मुखवीर तंत्र के आगे पुलिस भी बेबश थी, लेकिन पुलिस ने एक चाल चली और खबर फैला दी कि जब 32 साल में ददुआ का कुछ नहीं हुआ तो हम क्या कर लेंगे। हम तो सिर्फ डयूटी निभाने और टाईम पास करने आए हैं। यह खबर ददुआ तक पहुंची और वह भी थोड़ा लापरवाह हो गया।
तीन महीने तक चंबल के जंगलों में भटकती रही पुलिस
छोटो पटेल के मारे जाने के बाद उसी समय पुलिस को जानकारी मिल गई कि आगामी 22 जुलाई को ददुआ कहां पर होगा। अपै्रल 2007 में आपरेशन ददुआ शुुरु हुआ था और धीरे-धीरे 22 जुलाई का वक्त आ गया था। मुख्यमंत्री मायावती का आदेश था और तेज तर्रार कहे जाने वाले आईपीएस अमिताभ यश को कमान सौंपी गई। अमिताभ पहले भी डाकूओं के इलाके में काम कर चुके थे।
एसटीएफ के सामने सबसे बड़ी मुश्किल थी कि जिसकी उसे तलाश थी उसकी फोटो तक नहीं थी। पुलिस ने ददुआ के उत्पीडऩ के शिकार लोगों से संपर्क किया और उनके बताए हुए चेहरे के अनुसार ददुआ का स्कैच तैयार कर तश्वीर बनाई। 22 जुलाई को एसटीएफ ने स्थानीय पुलिस को अपने साथ लिया लेकिन कानोकान किसी को भनक तक नहीं होने दी। करीब डेढ घंटे तक गोलीबारी हुई और दस लोग मारे गए। उनमें से ददुआ कौन है यह पहचान पाना पुलिस के लिए मुश्किल था। स्थानीय लोगों को बुलाकर पहचान कराई गई और डीएनए टेस्ट के बाद तय हुआ कि ददुआ मारा गया।

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