कार्यशाला के समन्वयक गिरीश पांडेय एवं भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की इस प्रकार के चित्र अजंता के गुफाओं मे देखने को मिलते है। यह चित्रण एक विशेष प्रकार की सतह बना कर की जाती है। जिससे यह चित्र दीर्घकालीन सुरक्षित रहते है। इसे ‘भित्ति चित्रण की ‘गीली चित्रण पद्धति’ (wet process of Mural पेंटिंग) भी कहा जाता है। इसमे बनायी गयी सतह जब तक गीली रहती है तभी तक चित्रकारी की जाती है। यह काफी पुरानी एवं पूर्ण देशी पद्धति है। इसमे प्राकृतिक रंग का निर्माण पत्थरों तथा वनस्पतियों से स्वयं ही किया जाता है। नर्म रंगीन पत्थरों को कठोर पत्थर पर घिस कर रंग तैयार किए जाते हैं। सतह के निर्माण मे चूना तथा संगमरमर के महीन और कुछ मोटे दाने के आनुपातिक मिश्रण को देशी चक्की मे पिसाई करके तैयार कर दीवार पर प्लास्टर के लिए प्रयोग किया जाता है।
यह रंग एवं घोल जीतने पुराने होंगे वो उतने ही अच्छे होते हैं। कलाकार अजीत वर्मा जी ने बताया कार्यशाला मे जिस रंग एवं प्लास्टर का प्रयोग किया जा रहा है यह 16 साल पुराना है। संप्रति इस विधा मे काम करने वाले कलाकारों की संख्या बहुत ही कम है। अजीत वर्मा ने इस विधा को अपने साथ जीवित रखा है।अजीत वर्मा जी को यह विधा अपने गुरु के. जी. सुब्रमानियम (भारत के सुप्रसिद्ध कलाकार) एवं अपने पिता श्री गयारसि लाल वर्मा ( जो एम0 एस० युनिवर्सिटी, बरोडा के शिक्षक थे) उनसे मिला है।
भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की कार्यशाला के दौरान अजित वर्मा ने बड़े ही भाउकता से कहा की यह भावुक पल है अपने पिता जी श्री गयारसि लाल वर्मा को याद करते हुए एक महत्वपूर्ण बात साझा की। उन्होंने कहा कि आज जो कार्य मैं यहाँ कर रहा हूँ यह मेरे पिता की दिली तमन्ना थी कि इस विधा को आगे बढ़ाया जाए। कार्यक्रम में चर्चा करते हुए अजित वर्मा ने कहा मुझे आज बड़ी ख़ुशी हो रही है कि इस काम के प्रेरणा मेरे पिता ग्यारसी लाल वर्मा (जो आज भले ही शारिरिक रूप में नहीं हैं ) हैं। आज उनकी आत्मा को बड़ी खुशी हो रही होगी।
लखनऊ में यह फ्रेस्को वर्क उनकी स्मृति स्वरूप रहेगी है। बताना चाहेंगे कि लखनऊ के रवींद्रालय पर बनी टेराकोटा ग्लेज्ड म्यूरल तैयार करने में कलाऋषि गुरु के. जी. सुब्रमण्यम के साथ मेरे पिता भी सहयोगी रहे और आज लखनऊ में आकर इस वास्तुकला संकाय में इस काम करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। वास्तुकला एवं योजना संकाय के प्राचार्य एवं डीन तथा इस कार्यशाला की मुख्य संरक्षक डा.वंदना सहगल ने कलाकार का सम्मान कर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा की की यह बहुत ही श्रमसाध्य एवं खूबसूरत कला शैली है। इसके रंग अत्यंत आकर्षक होते हैं।