न्यूरो सर्जन डॉ. मनीष वैश्य ने बतायाकि अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ न्यूरोलॉजिकल सर्जन्स के अनुसार, स्कोलियोसिस के 80 प्रतिशत मामलों में इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं होता है। अधिकतर बच्चों में सात साल की उम्र तक इसका डायग्नोसिस हो जाता है।
उन्होंने बताया कि यह स्थिति बच्चों में किशोरावस्था तक पहुंचने से पहले विकसित होती है। स्कोलियोसिस के अधिकतर मामलों का कारण पता नहीं है, लेकिन कई बच्चों में यह सेरिब्रल पाल्सी और मस्क्युलर डिसट्रॉफी के कारण होता है। स्कोलियोसिस के अधिकतर मामले मामूली होते हैं, लेकिन कुछ बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ स्थिति गंभीर होती जाती है।
जानिए किस कारण होती है यह बीमारी न्यूरो सर्जन डॉ. मनीष वैश्य ने कहा इसके अधिकतर मामले अनुवांशिक होते हैं, क्योंकि यह समस्या बच्चों को विरासत में मिलती है। इसके अलावा और भी वजह हो सकती है।
· जन्मजात विकृति जो नवजात शिशुओं की स्पाइनल बोन को प्रभावित करती है, जैसे स्पाइनल बायफिडा। लड़का-लड़की की उम्र : स्कोलियोसिस, कम उम्र में ही होता है, किशोरावस्था से पहले। वैसे तो यह समस्या लड़का-लड़की दोनों में हो सकती है, लेकिन लड़कियों में इसका खतरा अधिक होता है।
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उपचार: न्यूरो सर्जन डॉ. मनीष वैश्य ने बतायाकि उपचार कई कारकों पर निर्भर करता है, जिनमें सम्मिलित हैं स्पाइन में कर्व कितना है, कर्व लगातार बढ़ तो नहीं रहा है और स्कोलियोसिस का प्रकार क्या है। उपचार के सबसे प्रमुख विकल्प ब्रेसिंग और सर्जरी हैं। कुछ बच्चों को कर्व को बढ़ने से रोकने के लिए ब्रेस पहनने पड़ते हैं, अधिक गंभीर मामलों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
ब्रेसिंग: अगर कर्व लगातार बढ़ रहा है और यह 25-40 डिग्री है तो ब्रेसिंग की जरूरत पड़ सकती है। ब्रेसिंग से रीढ़ की हड्डी सीधी नहीं होती, लेकिन यह कर्व को बढ़ने से रोक सकती है। जब स्कोलियोसिस की पहचान जल्दी हो जाती है, तब ब्रेसिंग अधिक प्रभावी होता है। जिन लोगों को ब्रेस लगाए जाते हैं, उन्हें इसे प्रतिदिन 15-23 घंटे तक पहनना पड़ता है, जब तक कि यह विकसित होना रुक न जाए। जितने अधिक समय तक मरीज इसे लगाए रखेगा, परिणाम उतने बेहतर आएंगे।
सर्जरी: उन लोगों के लिए सर्जरी जरूरी हो जाती है जिनका कर्व 40 डिग्री से अधिक हो। सर्जन के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि स्पाइन के विकास को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित किए बिना कर्व को बढ़ने से कैसे रोका जाए। सर्जरी में स्पाइनल फ्यूजन प्रक्रिया के द्वारा स्पाइन के असामान्य विकास को रोकने का प्रयास किया जाता है।
सर्जरी के बाद की सावधानियां मरीज सर्जरी के बाद तुरंत ठीक नहीं हो जाते, उन्हें ठीक होने में कुछ समय लगता है। घाव 7-14 दिनों में भर जाते हैं और फ्यूजन को पूरी तरह ठीक होने में 6-9 महीने का समय लगता है। मरीज की स्थिति में सुधार छह महीने बाद दिखने लगता है। सर्जरी के बाद किसी भी भारी सामान को उठाने, मुड़ने या तेजी से घूमने से बचना चाहिए। इस दौरान केवल उतनी एक्सरसाइज करें जिससे स्पाइन पर दबाव न पड़े या मुड़े न। जब तक फ्युजन ठीक नहीं हो जाता तब तक फुटबॉल, हॉकी और मार्शल आर्ट्स जैसे खेलों से दूर रहें।