प्रस्ताव के मुताबिक, पुलिसकर्मियों ने सालभर में कितनी चल-अचल संपत्ति खरीदी और बेची इसका ब्योरा पुलिसकर्मियों को देना होगा। साथ ही पीपीएफ संवर्ग के अधिकारियों के लिए पांच साल की चल-अचल संपत्ति का ब्योरा देने के बजाय हर साल अनिवार्य रूप से संपत्ति का ब्योरा देने की भी बात कही। डीजीपी ने यह प्रस्ताव उत्तर प्रदेश पुलिस महकमे में शुचिता व पारदर्शिता लाने के लिए दिया है। कमिश्नर प्रणाली लागू करने के बाद पुलिस महकमे से यह दूसरी बड़ी खबर है।
कर्मचारी आचरण सेवा नियमवाली को मजबूत करने की जरूरत डीजीपी ने अपने भेजे गए पत्र में कहा है कि चल-अचल संपत्ति का विवरण नियमित रूप से दिए जाने के लिए कर्मचारी आचरण सेवा नियमवाली 156 को और मजबूत बनाने की जरूरत है। उप्र पुलिस में पीपीएस संवर्ग व अराजपत्रित कर्मचारियों के लिए नियमावली के अनुसार ऐसा विवरण पांच साल की अवधि में दिया जाने का नियम लागू होना चाहिए। प्रस्ताव के अनुसार, प्रथम नियुक्ति के समय और उसके हर पांच साल पर पुलिस विभाग के प्रत्येक सरकारी कर्मचारी उन सभी अचल संपत्ति के बारे में बताएगा, जिसका वह स्वामी हो, जिसे उसने स्वयं अर्जित किया हो या फिर उसके परिवार द्वारा वह संपत्ति अर्जित की गई हो।
15 जनवरी तक दिया जाना अनिवार्य चल अचल संपत्ति का विवरण प्रत्येक वर्ष अब तक आईपीएस अधिकारी ही देते थे। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों हेतु चल अचल सम्पत्ति का विवरण प्रति वर्ष कैलेण्डर वर्ष के शुरुआत में 15 जनवरी तक दिया जाना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश पुलिस में पीपीएस संवर्ग व अराजपत्रित कर्मचारियों के लिए नियमवाली के अनुसार ऐसा विवरण पांच साल की अवधि में दिया जाता था। मगर नए प्रस्ताव के अनुसार, इसे प्रति वर्ष अनिवार्य किया जाना है।
भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए फैसला लखनऊ व गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद पुलिस महकमे से यह दूसरी बड़ी खबर है। कई बार थानों में भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते हैं। आसा में पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के लिए हर साल अपनी चल-अचल संपत्ति का पूरा ब्योरा उजागर करने की सिफारिश भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी कदम साबित हो सकता है।