उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश मुस्लिम समाज से सलाह-मशवरा किए बगैर तैयार किया गया है और अगर सरकार इसे संसद में विधेयक के तौर पर पेश करेगी तो बोर्ड सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से गुजारिश करेगा कि वे इसे पारित ना होने दें। इलियास ने बताया कि बोर्ड का स्पष्ट रुख है कि वह बाबरी मस्जिद मामले में अदालत के अंतिम फैसले को स्वीकार करेगा। बैठक में यह भी राय बनी कि सरकार मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश या कानून लाने की मांग के साथ दिए जा रहे जहरीले बयानों पर रोक लगाए।
बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जीलानी ने इस मौके पर कहा कि अयोध्या के विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रहने की स्थिति में कोई अध्यादेश नहीं लाया जा सकता। धर्मनिरपेक्षता संविधान का आधार है और अगर सरकार अध्यादेश या कानून लाती है तो वह संवैधानिक तौर पर सही नहीं होगा और बोर्ड उसे अदालत में चुनौती देगा।
इस सवाल पर कि बोर्ड मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद तथा अन्य कुछ संगठनों द्वारा विभिन्न आयोजन करके सरकार पर दबाव बनाए जाने की शिकायत उच्चतम न्यायालय से क्यों नहीं करता, जीलानी ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के रवैया को अच्छी तरह जानते हैं इसीलिए हम मंदिर को लेकर हो रही बयानबाजी के खिलाफ अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इससे पहले जब बोर्ड ने विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल के खिलाफ शिकायत की थी तब अदालत ने कहा था की इन बातों में पड़ना ठीक नहीं है और इनका अदालत पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इलियास ने बताया कि बैठक में बोर्ड की दारुल कजा कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें बताया गया कि इस साल देश में 14 नई दारुल कजा का गठन किया गया है। इस महीने के अंत तक कुछ और स्थानों पर भी इन्हें कायम किया जाएगा। दारुल कजा में कम वक्त में जायदाद, वरासत और तलाक जैसे मामलों का निपटारा किया जाता है।उन्होंने बताया कि बैठक में यह फैसला किया गया है कि दारुल कजा के फैसलों का दस्तावेजीकरण किया जाएगा ताकि अदालत के बोझ को कम करने में दारुल कजा के योगदान को दुनिया के सामने लाया जा सके।
बोर्ड की महिला विंग की प्रमुख असमा ज़हरा ने इस मौके पर बताया कि उनके विंग की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे मुल्क में तीन तलाक अध्यादेश और शरई कानूनों में दखलअंदाजी के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में करीब दो करोड़ महिलाओं ने शिरकत की।