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सीतापुर स्थित पावन धाम नैमिषारण्य एक पवित्र तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस स्थान को ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था। प्राचीन काल में करीब 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इस स्थान पर तप व वेदों पुराणों की रचना की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा जी के चक्र ने पृथ्वी में एक छेद किया था, जिसके परिणामस्वरूप जल का एक विशाल भंडार उत्पन्न हुआ था, जिसे चक्रतीर्थ के नाम से जाना जाता है। रामायण में भी ये उल्लेख है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था। वहीं महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी नैमिषारण्य आए थे।नैमिषारण्य स्थित मां ललिता देवी का मंदिर आदिशक्ति मां जगदंबे के भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है। नैमिषारण्य में इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के प्रवेश द्वार के दोनों ओर हाथी की मूर्तियां हैं। नैमिषारण्य में ललिता देवी का वर्णन 51 शक्तिपीठों में आता है।
नैमिषारण्य स्थित वेद व्यास आश्रम, जिसे व्यास गद्दी के नाम से भी जाना जाता है, मनु-शतरूपा मंदिर के समीप स्थित है। मान्यता है कि इसी आश्रम में महर्षि वेदव्यास ने 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, गीता, महाभारत और श्री सत्यनारायण व्रत कथा की रचना की थी।