संत बढ़े ध्यान से विवेक की बातें सुन रहे थे। वो अपने आश्रम के पीछे बने बगीचे में उसे ले गए। उसे कहा, जो भी फल-सब्जी तुम्हें पसंद आए, उसे तोड़ लेना, लेकिन तोड़ना एक ही। साथ ही शर्त रखी कि आगे बढ़ जाओ तो पीछे नहीं मुडना। विवेक संत के आदेश के अनुसार बगीचे में घूमने लगा। उसे बहुत ताजा ताजा फल नजर आए, लेकिन उसने किसी को नहीं तोड़ा और आगे बढ़ता रहा। बस जब वो आखिर में पहुंचा तो दो तीन फल बचे थे, जो कि ज्यादातर गले हुए थे, अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था, उसने कम गला हुआ फल तोड़ और संत के पास चले गया। संत ने उसे देखकर कहा, तुम इतने ताजा ताजा फलों को छोड़कर औऱ अच्छे की लालसा में आगे बढ़ते रहे, लेकिन जब बगीचे का छोर खत्म होने वाला था तो तुमने जो मिला उसे ही ले लिया। तुमने जो अच्छे फल थे, उन्हें पाने की चाहत थी, उन्हें देखकर तुम खुश हो रहे थे, लेकिन और खुशी के चक्कर में सबको खोते रहे।
जिन्दगी के सफर में हमें खुशी की तलाश होती है, लेकिन जो छोटी छोटी सी खुशी हमें मिलती है, उसे गंवा देते हैं बड़ी खुशी की लालसा में। वो मिलती है या नहीं लेकिन तब तक हमारा समय पूरा हो जाता है, इसके लिए जरूरी है कि मंजिल की खुशी की आस में सफर की खुशियों को नहीं गंवाना चाहिए। जो मिल रहा है, उसमें खुशी तलाशना जरूरी है, जो नहीं है उसके बारे में सोचकर अपनी खुशी को नहीं गंवाना चाहिए।