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आरटीआई से हुआ खुलासा
यूपी की जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से इतनी अधिक हो चुकी है इसका खुलासा खुद विभाग की ओर से एक आरटीआई में दी गई जानकारी के जरिये हुआ है। लखनऊ के राजाजीपुरम स्थित सामाजिक संगठन ‘तहरीर’ के अध्यक्ष इंजीनियर संजय शर्मा ने यूपी में जेलों की क्षमता और उसमें बंद कैदियों की संख्या को लेकर आरटीआई से जानकारी मांगी थी। कारागार प्रशासन एवं सुधर सेवाएं विभाग से उन्हें मिली जानकारी हैरान करने वाली है। न तो कारागारों की स्थिति संतोषजनक है और न ही कैदियों की तादाद क्षमता के अनुसार है।
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यूपी की जेलों में कितने कैदी
आरटीआई के जरिये अपर सांख्यिकीय अधिकारी/जन सूचना अधिकारी सैय्यद नसीम द्वारा संजय को मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश की जेलों में 60,805 कैदियों के रखने की व्यवस्था है, जबकि अभी बंद हैं 1,09,619 कैदी। इनमें 24,961 दोषसिद्घ तो 84,658 विचाराधीन कैदी हैं। 54,397 पुरुष और 3,219 महिला कैदियों की व्यवस्था के सापेक्ष 23,841 सिद्घदोष और विचाराधीन पुरुष कैदी 77,509 जबकि 1,001 सिद्घदोष और 3,596 महिला विचाराधीन कैदी जेलों में बंद हैं। इसी तरह यूपी की जेलों में 3,189 अव्यस्क कैदियों को रखने का इंतजाम है, हालांकि इसके विपरीत 12 सिद्घदोष और 3,168 विचाराधीन अल्प व्यस्क कैदी जेलों में बंद हैं।
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मुरादाबाद जेल की हालत सबसे खराब
यूपी में 63 जिलों में जिला जेल हैं। इनमें सबसे खराब हालत मुरादाबाद जिला जेल की है। आरटीआई के अनुसार 30 जून की स्थिति के मुताबिक मुरादाबाद जिला कारागार में निर्धारित क्षमता से 4.85 गुना ज्यादा कैदी बंद किये गए हैं। न तो 4 स्पेशल जेलों और न ही प्रदेश की 6 सेंट्रल जेलों की स्थिति ठीक है। केन्द्रीय कारागारों में तय क्षमता से 1.23 गुना अधिक कैदी रखे गए हैं।
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महिला कैदियों के बच्चे और विदेशी कैदी
महिला कैदियों के साथ बड़ी तादाद में उनके बच्चे भी रह रहे हैं। यूपी की जेलों में महिला कैदियों के साथ कुल 453 बच्चे भी जेलों में रह रहे हैं। इनमें 36 लड़के और 32 लड़कियां दोषसिद्घ महिला कैदियों के साथ व विचाराधीन के साथ 176 लड़के और 209 लड़कियां हैं। इसी तरह 439 विदेशी कैदी भी हैं, जिनमें 107 दोषसिद्घ और 332 विचाराधीन हैं। इसके अलावा 53 अन्य विचाराधीन कैदी भी बंद हैं।
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हालांकि नियम के अनुसार देखें तो कैदियों को जेलों में भी जीने के बेहतर हालात मिलने चाहिये, जिसमें भोजन, पानी, मेडिकल फैसेलिटी, समेत तमाम सुविधाएं शामिल रहती हैं। पर जेलों में जिस तरह से क्षमता से अधिक कैदी भरे गए हैं उससे ये मुमकिन नहीं लगता। कोरोना महामारी के दौर में ये स्थिति खतरनाक है। जरूरत इस बात की है कि कोरोना महामारी को देखते हुए कैदियों के मानवाधिकार का संरक्षण किया जाए।