अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने वाले बीजेपी के फैसले का समर्थन करने वाली मायावती को अब जम्मू-कश्मीर में भी बहुजन समाज पार्टी के लिए नई संभावनाएं नजर आ रही हैं। बसपा सुप्रीमो की नजर राज्य की कुल आबादी की 7.6 प्रतिशत अनुसूचित जाति पर है। उन्हें लगता है कि उत्तर प्रदेश की तरह ही यहां बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला हिट हो सकता है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति की आबादी 7 लाख 70 हजार 155 थी जो कुल आबादी का 7.6 प्रतिशत है, जिसमें करीब 83 फीसदी एससी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि 1981 के बाद से राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी 55 फीसदी तक बढ़ी, जो अब करीब 65 फीसदी के आसपास हो सकती है। राज्य में कुल 13 जातियों को अनुसूचित जाति में रखा गया है।
जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति की 13 जातियों की कुल आबादी में तीन जातियों की आबादी 84 प्रतिशत से ज्यादा है। इनमें मेघ सबसे ज्यादा तीन लाख से ज्यादा (39.1 प्रतिशत) हैं। इसके बाद चमार करीब 1 लाख 88 हजार (24.3 प्रतिशत), डोम या डूम 1 लाख 60 हजार (20.8 प्रतिशत) हैं। इसके अलावा बटवाल, बरवाला, बासिथ और सरयारा की आबादी लगभग 13 फीसदी है। शेष छह अनुसूचित जातियों की संख्या तीन प्रतिशत है।
हिट हो सकता है सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूलामायावती की नजर जम्मू-कश्मीर के तीन जिलों (जम्मू, कठुआ, उधमपुर) पर है, जहां अनुसूचित जाति की अच्छी खासी तादाद है। जम्मू में 84 फीसदी से ज्यादा हिंदू, जिसमें लगभग 25 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है। इसके अलावा यहां 7.5 प्रतिशत सिख, 7 प्रतिशत मुस्लिम और 1.2 प्रतिशत अन्य आबादी है। ऐसे ही 87 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू आबादी वाले जिले कठुआ में तकरीबन 23 फीसदी अनुसूचित हैं। यहां 10 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और लगभग दो प्रतिशत अन्य आबादी है। उधमपुर में 88 प्रतिशत हिंदू आबादी में 19 प्रतिशत से ज्यादा एससी हैं, यहां भी 10 प्रतिशत मुस्लिम के अलावा दो प्रतिशत दूसरे लोग हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मायावती को लगता है कि बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला इन तीन जिलों में हिट हो सकता है।