लोकसभा चुनाव तो दूर की बात है, अमर सिंह अपने बूते पर विधानसभा चुनाव भी नहीं जिता सकते। ठाकुर बिरादरी में भी वह सर्वमान्य नेता नहीं हैं। ऐसे में वह आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिये किस तरह उपयोगी होंगे, चर्चा का विषय है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमर सिंह में भले ही चुनाव जिताने की क्षमता न हो, लेकिन वह राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं और अपनी बेबाक जुबानी हमलों से विपक्षी खेमे का सिर दर्द जरूर बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा भाजपा उन्हें सपा-बसपा गठबंधन की काट के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकती है।
यह भी पढ़ें
अटकलों पर विराम! बीजेपी में जल्द शामिल हो सकते हैं अमर सिंह
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद सपा-बसपा के संभावित गठबंधन ने पहले ही बीजेपी की नींद उड़ा रखी है। इसलिये यूपी में उसे किसी ऐसे नेता की जरूरत हो सकती है, जो किसी भी स्तर पर जाकर किसी भी नेता के खिलाफ बयान दे सके। वैसे भी अमर सिंह गड़े मुर्दे उखाड़ने में माहिर हैं और उन्हें कई बड़े नेताओं का राजदार भी माना जाता है। ऐसे में बीजेपी अमर सिंह के सहारे विपक्षी दलों की टेंशन बढ़ा सकती है। लखनऊ में योगी सरकार की ब्रेकिंग सेरेमनी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके संकेत भी दे दिये थे। उद्योगपतियों और राजनेताओं के संबंधों पर टिप्पणी करते हुए पीएम मोदी ने मुस्कराते हुए भरे मंच से कहा था कि अमर सिंह बैठे हैं। ये सबकी हिस्ट्री निकाल देंगे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन से मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव नदारद रहे थे। इससे संकेत मिलते हैं कि यादव परिवार का झगड़ा अभी शांत नहीं हुआ है। हो सकता है बीजेपी इसी का फायदा उठाने की जुगत में है! गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम कुनबे की रार की वजह से ही यूपी में कमल खिला था। शिवपाल यादव और अमर सिंह की दोस्ती जग जाहिर है। ऐसे में अमर सिंह सपा विधायक शिवपाल यादव को बीजेपी के करीब ला सकते हैं। सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से शिवपाल का अनुपस्थित होने भी इन अटकलों को बल मिल रहा है।
यह भी पढ़ें
सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में नहीं पहुंचे मुलायम-शिवपाल
शिवपाल क्या कर सकते हैंपरिवार की रार के बीच शिवपाल यादव समर्थक ‘शिवपाल फैंस एसोसिएशन’ का पूरे उत्तर प्रदेश में विस्तार कर चुके हैं। सूबे के 75 जिलों में से 50 जिलों में संगठन के पदाधिकारी नियुक्त हो चुके हैं। शिवपाल के संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं की संख्या एक लाख के करीब बताई जा रही है। ये सभी कार्यकर्ता अभी तक समाजवादी पार्टी को जिताने का काम करते रहे हैं। ऐेसे में अगर शिवपाल सपा से अलग हो जाते हैं, निश्चित ही अखिलेश को किसी झटके से कम नहीं होगा।